जन्म कुंडली में धन भाव का विचार
पापाः सर्वे धनस्थाने धनहानिकरा मताः । अन्यैः सौम्यैः शुभं सर्वमृद्धिवृद्धिधनादिकम् ॥
द्वितीय भाव में सब पापग्रह हों तो दरिद्र बनाता है और यदि द्वितीय भाव में सब शुभग्रह हों तो धन-धान्य की वृद्धि करते हैं।
कुराश्चतुर्ष केन्द्रेषु तथा क्रूरा धनेऽपि च । दरिद्रयोगं जानीयात्स्वपक्षस्य भयङ्करः ॥२॥
क्रूरग्रह केन्द्र में हों और दूसरे भाव में भी क्रूरग्रह हों तो दरिद्र बना देता हे।
अष्टमस्थो यदा भौमस्त्रिकोणनीचगो रविः । स शीघ्रमेव जातस्याद्भिक्षाजीवी च दुःखितः ॥
लग्न से आठवें भाव में मंगल हो, त्रिकोण (९।५) स्थित सूर्य नीच का हे तो जन्म लेते ही भिक्षाटन करनेवाला होता है।॥
कन्यायां च यदा राहुः शुक्रो भौमः शनिस्तथा । यत्र जातस्य जायेत कुबेरादधिकं धनम् ॥
कन्या राशि में राहु, शुक्र, मंगल, शनि चारों ग्रह हों तो जातक कुबेर के भी अधिक धनी होता है।।
अर्कः केन्द्रे यदा चन्द्रो मित्रांशे गुरुणेक्षितः । वित्तवान् ज्ञानसम्पन्नो जायते च तदा नरः ॥
केन्द्र में सूर्य अपने मित्र के नवमांश का चन्द्रमा-गुरु से देखा जाता हो तो धनवान्, ज्ञान से सम्पन्न होता है।।
स्वक्षेत्रस्थो यदा जीवो बुधः सौरिस्तथैव च । तदा जातः स दीर्घायुः सपत्तिश्च पदे पदे ।।
गुरु अपने घर का हो तथा बुध, शनि भी अपने घर का हो तो जातक दीर्घायु और उसको पद-पद पर धन मिलता है।।
कुंडली में धन भाव व सुख भाव विचार
लग्नं लग्नेशसंयुक्तं यस्य जन्मनि जायते । न मुञ्चन्ति गृहं तस्य कुलस्त्रिय इव श्रियः ॥
लग्नेश लग्न में हो तो लक्ष्मी स्त्री की तरह जातक के घर में रहती हैं।।
चन्द्रेण मङ्गलो युक्तो जन्मकाले यदा भवेत् । तस्य जातस्य गेहूं तु लक्ष्मी नैव विमुञ्चति ॥
जन्म काल में चन्द्रमा से युत मंगल हो तो उस जातक के घर से लक्ष्मी कहीं नहीं जाती हैं।।
मासमध्ये तु यत्सङ्ख्यदिवसैर्जायते पुमान् । तत्सङ्ख्यवर्षभुक्तौ तु लक्ष्मीर्भवति निश्चितम् ॥
उपरोक्त योग में महीने के जितने दिन पर जन्म हो उतने ही वर्ष व्यतीत होने पर उसको धन मिलता है।
सुखभावविचार
तुर्यस्थाने स्थिताः पापा बालत्वे मातृकष्टदाः । सौख्यं सौम्याः प्रकुर्वन्ति राजसम्मानदायकाः ॥१॥
चतुर्थ स्थान में पापग्रह हों तो बाल्यावस्था में माता को कष्ट देते हैं और यदि शुभ ग्रह हो तो सुख व राज्य सम्मान देते हे।
लग्नाच्चतुर्थगः पापो यदि स्याद् बलवत्तरः । तदा मातृवधं कुर्यात्केन्द्रे वा न परो यदि ॥
लग्न से चतुर्थ भाव में बली होकर पापग्रह हों तो जातक की माता मर जाती है, किन्तु केन्द्र में कोई ग्रह हो तो माता नहीं मरती है।।
पापमध्यगते लग्ने चन्द्रे वा पापसंयुते । सौम्ये निधनगे पापे मातृहा सप्तवासरे ॥
द्वितीये द्वादशे स्थाने यदा पापो व्यवस्थितः । तदा मातुर्भयं विन्द्याच्चतुर्थे दशमे पितुः ॥
दूसरे-बारहवें भाव में पापग्रह हों तो माता को डराने वाला होता है, और संवि-दशवें में पापग्रह हों तो पिता को डराने वाला होता है।॥
कुंडली में धन भाव व सुख भाव विचार
दूसरे-बारहवें भाव में पापग्रह हों अथवा लग्न में पापग्रह से युत चन्द्रमा और आठवें में शुभग्रह पाप से युत हो तो जातक की माता सात दिन में में जाती है।।
चतुर्थे हन्यते माता दशमे च तथा पिता । सप्तमे भवने क्रूरास्तस्य भार्या न जीवति ॥
चौथे भाव में क्रूरग्रह हो तो माता, दशवे में क्रूरग्रह हो तो पिता त सातवें में क्रूरग्रह हो तो स्त्री नहीं जीती है।।
मेरे पायङ्गारकमध्यस्थः सूर्यः कुर्यात्पितुर्वधम् । मध्ये वा रजनीनाथो मातुमृत्युर्न संशयः ॥
शनि-मंगल के बीच में सूर्य हो तो पिता और यदि शनि-मंगल के बीच में चन्द्रमा हो तो माता को मारता है।
माचन्द्राद्दष्टमगे पापे चन्द्रे पापसमन्विते । पापैर्बलिष्ठैः संदृष्टे सद्यो भवति मातृहा ॥
चन्द्रमा से आठवें भाव में पापग्रह हो और चन्द्रमा भी पाप से युत हो बली पापग्रह से दृष्ट हो तो जातक की माता मर जाती है।
लग्नस्थाने यदा जीवो धनस्थाने शनैश्चरः ।
राहुश्च सहजे स्थाने माता तस्य न जीवति ॥
लग्न में गुरु, द्वितीय भाव में शनि, तृतीय में राहु हो तो जातक की माता नहीं जीती है।॥
सिंहे भौमस्तुले सौरिः कन्यायां वा तो भवेत् । मिथुने च यदा राहुर्जननी तस्य नश्यति ।।
सिंह में मंगल, तुला में शनि, कन्या में शुक्र, मिथुन में राहु हो तो जातक की माता मर जाती है।
चन्द्रः पापग्रहैर्युक्तश्चन्द्रो वा पापमध्यगः ।
चन्द्रात्सप्तमगः पापस्तदा मातृवधो भवेत् ॥
चन्द्रमा पाप से युत हो या पापग्रह के बीच हो अथवा चन्द्रमा से सातवेंभाव में पापग्रह हो तो जातक की माता मर जाती है।॥
एकादशे यदा क्रूरः पञ्चमे शुक्रशीतगू ।
प्रथमं कन्यका जाता माता तस्यास्तु कष्टगा ॥
ग्यारहवें भाव में क्रूरग्रह हो तथा पाँचवें भाव में शुक्र-चन्द्र हो तो जातक की माता को पहली सन्तान कन्या हुई होगी और जातक की माता को बहुत कष्ट हुआ होगा।।
धने राहुर्बुधः शुक्रः सौरिः सूर्यो यदा ग्रहाः । तदा परिजायते द्वितीय भाव मातुर्भवेन्मृत्युमृतोऽयं॥
द्वितीय भाव में राहु, बुध, शुक्र, शनि, सूर्य ये पाँचों ग्रह हों तो बालक की माता मर जाती है और बालक मरा हुआ ही पैदा होता है।
नीचस्थानगतो चन्द्रे तिष्ठेद्वै भार्गवात्मजः । पापासक्तो महाक्रोधी माता तस्य न जीवति ॥
चन्द्रमा नीच का होकर शुक्र के साथ हो तो जातक पाप में आसक्त, । महाक्रोधी हो और उसकी माता नहीं जीती है।।
द्वादशे रिपुभावे च यदा पापग्रहो भवेत् । तदा मातुर्भयं विन्द्याच्चतुर्थे दशमे पितुः ॥
बारहवें, छठें में पापग्रह हो तो माता को और दशवें, चौथे में पापग्रह हो तो पिता को भय होता है।।
त्रिसप्तस्थो दिवानाथो जन्मस्थश्च महीसुतः । तस्य माता न जीवेत वर्षमेकं पलद्वयम्
तीसरे अथवा सातवें घर में सूर्य हो, लग्न में मंगल हो तो जातक की । माता एक वर्ष से ज्यादा नहीं जीती है।
द्यूनाष्टमगते पापे क्रूरग्रहनिरीक्षिते । जनन्या सह मृत्युः स्याद् बालकस्य न संशयः ॥
सातवें, आठवें स्थित पापग्रह को क्रूरग्रह देखता हो तो माता के साथ ही बालक मर जाता है।