तन्त्र मन्त्र की दुर्लभ अचूक साधनायें
प्राचीन शास्त्रों और पुराणों में जो वर्णन प्राप्त होता है उनको पढ़ने से ऐसा अनुभव होता है कि प्रत्येक देवता और ऋषि ने अनेक माधनाओं को सिद्ध करने का प्रयत्न किया है।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि प्रत्येक साधक को प्रयत्न करके साधना करनी ही चाहिए और तब तक प्रयत्न करता रहे, जब तक कि वह पूर्णरूपेण सिद्ध न हो जाए।
अगर प्रयत्न करने के बाद सिद्धि हो गयी तो उसकी जन्म- जन्म की अभिलाषा समाप्त हो जायेगी और जीवन में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं रहेगी।
साधक अगर चाहे तो गोपनीय तन्त्र साधना को सम्पन्न कर जीवन में सम्पूर्ण भोग और यश, पूर्णता और सफलता प्राप्त कर सकता है। साधना सम्पन्न करने के बाद साधक गर्व का अनुभव न करें। वृथा बकवाद अथवा आडम्बर भी न करें।
साधना में मन्त्र का विशेष स्थान है। मन्त्र साधक को सभी प्रकार के भयों से मुक्ति दिलाता है।
मन व एकाग्रता प्रदान कर के जप द्वारा समस्त भयों का नाश करके पूर्ण रक्षा करने वाले शब्दों को मन्त्र कहा जाता है। मन को एकाग्र करना और रक्षा करना जिसका धर्म है और जो अभीष्ट फल प्रदान करे, वे मंत्र कहे जाते हैं।
मन्त्र जीवन को मोड़ता है। मन्त्र जप करने से साधक का जिसमें हित होता है उसे मन्त्र का अधिष्ठाता देवता स्वयं संपादित करता है।
मन्त्र जप, उत्तम साधनहै। मंत्र जप द्वारा साधक की कुण्डली में आये निर्बल ग्रह को सबल ग्रह बना कर शुभ बनाया जा सकता है और साधक को उनके अशुभ प्रभाव से बचाया जा सकता है तथा भविष्य में उनसे लाभ भी प्राप्त किया जा सकता है।
प्रिय साधको ! यह तो बात मन्त्र की, जप की और साधक के शुभ और सफलता की, अब आपके लिए तन्त्र की कुछ अचूक दुर्लभ साधनायें प्रस्तुत हैं।
माँ काली साधना
साधक किसी भी मार्ग से अथवा किसी भी सम्प्रदाय से हो, वह शिशु के समान ही होता है। अब यह बात दूसरी है कि कोई इस शिशुत्व को सहज स्वीकार कर लेता है और किसी को आगे चलकर स्वीकार करना पड़ता है।
जिसे हम अपनी कठोर साधना की शक्ति कहते हैं वह वास्तव में क्या मातृस्वरूपा जगदम्बा द्वारा दी गई भाषा-ज्ञान के समान नहीं है?
समस्त साधना और तप उसी माता से निकल कर प्रकाश की तरह साधक तक आ रहा है। जीवन के मध्य यह बात हम जितनी जल्दी स्वीकार कर लें, उतना ही अच्छा होगा।
यह युग कलियुग जाना जाता है, और जो जैसी मानसिकता के बीच जीवन जिया है उससे कोई भी अपरिचित नहीं। वास्तविक अर्थों में यह तन्त्र का एक मात्र ही नहीं सम्पूर्ण रूप से तन्त्र का युग है। मेरा तो यह दृढ़ विश्वास है।
सिद्धि निरन्तर साधना या तोते की तरह दोहराये जा रहे प्रवचनों में नहीं अपितु गुप्त साधनाओं में छुपी है, और वह भी तंत्रोक्त साधनाओं में। ‘कलि’ पर केवल ‘काली’ ही विजय प्राप्त करने में सक्षम है और काली का अर्थ ही तंत्रोक्तसाधना है।
महाकाली की साधना के विधान तो प्रारम्भ से अन्त तक केवल तंत्रोक्त ही हैं, कोई भी ग्रन्थ उठाकर देखा जा सकता है। काली के तेजस्वी व सौन्दर्यमय स्वरूप का दूसरा नाम ‘ललिता’ है।
माँ ललिता सम्पूर्ण तन्त्रशास्त्र की मूल देवी मानी गई है, और यह विद्या इतनी गोपनीय और दुर्लभ मानी गई है कि इसको किसी को भी बतलाना निषेध कर दिया गया।
इसी से यह साधना लुप्त एवं अप्रचलित हो गई। यही जगदम्बा का स्वरूप है, वे ही अलग- अलग रूपों से हमारे जीवन का कल्याण करने वाली हमें साधना में सफल करने वाली वे ही प्रतिक्षण हमारे दुःख से कातर होने वाली भी हैं।
जिस प्रकार माँ का ध्यान केवल शिशु में लगा रहता है ठीक उसी प्रकार काली का ध्यान भी जब तक साधना में है उसका ध्यान लगा रहता है।
हालाँकि मूल प्रयोग तो केवल २१ दिन का ही है फिर भी साधक को चाहिए आगे भी नित्य करता रहे। साधक केवल रात्रि में ही साधना सम्पन्न करें। वस्त्र लाल होने चाहिएँ। लाल वस्त्र पहन कर साधक दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठे।
इस साधना में काली यन्त्र का पूजन देवी की शक्ति का स्मरण करते हुए और उसे अपने भीतर समाहित करने की प्रबल भावना रखते हुए कामिया सिन्दूर की इक्कीस बिन्दियों द्वारा ही करना है, काली यन्त्र ही अपने आप में चैतन्य और सिद्धिप्रद है। साधक को चाहिए कि वह रुद्राक्ष की माला के द्वारा मन्त्र जप करे।
वह मन्त्र इस प्रकार है- ओं कागा कालिका नमः ।
अनंग रती साधना
भारतीय संस्कृति और ज्योतिष के विद्वानों के यह कहते ही कि तारा उदय हो गया के साथ ही शुरू हो जाती है किसी सर्वगुण सम्पन्न जीवन साथी की तलाश हृदय की सारी उमंगों के साथ- साथ कामदेव द्वारा काम बाण का संधान होते ही इसी बसन्त ऋतु में ऐसी उमंगें उमड़ आएँ कि जीवन साथी की आवश्यकता अत्यन्त अनुभव होने लगे और मन कसमसा के जाग उठे अपनी समस्त कोमल भावनाओं और इच्छाओं के साथ।
विवाह मानव जीवन का एक अत्यन्त आवश्यक और नाजुक मोड़ है इसके विषय में हल्के ढंग से निर्णय नहीं लिया जा सकता और ऐसी स्थितियों में जहाँ कोई लड़का अथवा लड़की दोष से ग्रस्त हो वहाँ तो बेहद सावधानी पूर्वक विचार कर निर्णय लेने की आवश्यकता होती है।
विवाह के बारे में कई प्रयोग अनेक पुस्तकों में दिए गए हैं, अपनी पिछली पुस्तकों में मैंने भी ऐसे प्रयोग प्रकाशित किए जहाँ कोई मन चाहा वर अथवा वधु पाने की बात हो और साधक सरल प्रयासों से ही अपनी इच्छा की पूर्ति कर सके, लेकिन यही सबकुछ अभिशाप बन जाता है।
जब किसी युवक युवती के लिए उसकी विवाह योग्य आयु हो गई हो किन्तु उचित मेल न मिल पाया हो… कारण, शारीरिक असुन्दरता हो ग्रहों का सही मेल न हो पाना, सर्वांग गुण सम्पन्न होते हुए भी मनोनुकूल जीवन साथी न मिल पाना इस कारण मन पर बोझिलता व उदासी की पर्तें जमा हो जाती हैं, जो नवयुवक या नवयुवती को असमय ही हताश और रूखा बना देती हैं।
ऐसे में सारी सतर्कता, सारी योजनाएँ, सारे प्रयोग सारे मेल-मिलाप एकओर पड़े रह जाते हैं, और व्यक्ति अपने मनोवांछित को पाने में सफल नहीं हो पाता।
लेकिन सभी प्रयोगों, ऐसी साधनाओं का सिद्धि का मुहूर्त होता है यह मुहूर्त आप स्वयं देख लें और इस अचूक को प्रयोग करें।
यह प्रयोग अवश्य ही सफल होता है और साधक या साधिका अपने मनोनुकूल जीवन साथी प्राप्त करने में निश्चय ही सफल होता हैं।
किसी भी शुक्ल पक्ष में गुरुवार के दिन प्रातः स्नान कर जितना शीघ्र हो सके सूर्योदय के तुरन्त बाद साधना में बैठ जाए।
शुद्ध चमकदार पीले वस्त्र धारण करे और सामने पीले पुष्पों पर गुरु यन्त्र स्थापित कर अपने विवाह जैसी भी बाधा आ रही हो, उसका मन ही मन निराकरण करने की प्रार्थना करे, जिस विशेष वर या वधू की इच्छा हो उसके नाम का संकल्प करके जाप शुरू करे। यह जाप केवल आठ दिन करें। निम्न मन्त्र की कम से कम आठ माला प्रतिदिन करनी हैं।
मंत्र इस प्रकार है-
ओं ह्रीं ऐं अनंग रत्यै फट्
मन्त्र जप के बाद यन्त्र को एक पीले वस्त्र में बाँधकर अपने पास रख लें तथा माला किसी केले के पेड़ के नीचे चढ़ा दें।
वास्तव में यह तन्त्र का तीव्र प्रयोग है इसलिए इसका कम से कम प्रचार करें तथा अपनी मनोकामना पूर्ण हो जाने पर वैवाहिक जीवन में प्रवेश करने के बाद भी मन्त्र को यथा सम्भव अवश्य जपें।
इस प्रयोग के कारण सम्पूर्ण वैवाहिक जीवन में सदैव अनुकूलता बनी रहती है।
छाया पुरुष साधना
इस संसार का न केवल सामान्य संसारी वरन् तांत्रिक भी भूत, भविष्य और वर्तमान जानने का इच्छुक होता है।
तन्त्र विज्ञान में वर्तमान को सँवारने की कोई सटीक विद्या नहीं है क्योंकि वर्तमान तो संक्रमण का एक पल मात्र है और इसी से तन्त्र विज्ञान में भूत भविष्य की साधनाओं को ही प्रमुखता दी गई।
जहाँ भूतकाल में झाँककर अपने आचरण को समझने की चेष्टा करता है वहीं भविष्य के क्षणों को पकड़कर अपना जीवन सँवारने का कार्य करता है।
तांत्रिकों के अनुसार जीवन का अन्त वह नहीं है जिसे मृत्यु के अर्थ में बतलाया जाता है। वरन् जीवन का अन्त तो वह है जब शरीर अशक्त हो जाए, मन में उत्साह और आशा शेष न रह जाए और बस जीवन व्यतीत करने की इच्छा शेष रह जाए। जीवन में ऐसी स्थिति आने से पूर्व साधना के द्वारा इसे सँभाल लेने में ही बुद्धिमत्ता है।
अगर साधक के पास ऐसी साधना नहीं है, तो उस साधक और धरा पर पड़े जड़ पत्थर में कोई अन्तर ही नहीं, जो ठोकरों के माध्यम से इधर से उधर लुढ़कता रहता है।
छाया पुरुष साधना एक ऐसी साधना है इसमें सिद्धि प्राप्त कर साधक ऐसी क्षमता प्राप्त कर लेता है कि उसे न केवल अपने भविष्य का वरन् किसी के भी भविष्य का ज्ञान हो जाता है। होली का पर्व तो तांत्रोक्त साधनाओं के लिए ही होता है।
तन्त्र मार्ग में कुछ ऐसी गोपनीय साधनायें हैं जो केवल होली की रात्रि में ही सम्पन्न की जा सकती हैं।
छाया पुरुष साधना कर्ण पिशाचिनी साधना के समान है भी और नहीं भी है।
कर्ण पिशाचिनी तामसिक साधना है वहीं यह उत्तमसाधना है, अमावस्या की मध्य रात्रि को साधक लगभग स्नान कर काली धोती, काली बनियान पहनकर, काले आसन पर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठे और अपने सामने काले तिलों की ढेरी स्थापित कर दें, फिर कामिया सिन्दूर का तिलक करे और कड़वे तेल का दीपक जलाने के बाद उसका तेल अपने तलवों में लगाकर अभिमन्त्रित काले हकीक की माला से निम्न मन्त्र की ३१ माला का जप करें।
सिर पर काला रूमाल और कांधे पर काला वस्त्र अवश्य होना चाहिए।
अगले दिन प्रातः सूर्योदय के पूर्व ही साधक काले तिल की ढेरी को लाल वस्त्र में बाँधकर जहाँ चार रास्ते मिलते हों, वहाँ रख दे। यह साधना १२ दिन नियम से करनी है। समय एक ही रहना चाहिए।
मन्त्र इस प्रकार है-
ओं ग्लौं हौं भविष्य छाया पुरुषाय सिद्धये कथय दर्शय हौं ग्लौं फट्।