भगवान शिव द्वारा की गई राम स्तुति

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भगवान शिव द्वारा की गई राम स्तुति

आनंद रामायण कृत श्री राम स्तुति
आनंद रामायण के अनुसार भगवान शिव जी ने प्रभु श्री राम को अनेकों रूपों में प्रणाम किया तथा उनका भक्तों के ऊपर अनुग्रह कैसा था ।
जिसका वर्णन किया हे ।
उसी वर्णन स्तुति व उसका अर्थ जैसा मुझसे बन पाया सभी विद्वत जानो के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हु ।

सुग्रीवमित्रं परमं पवित्रं सीताकलत्रं नवमेघगात्रम्।
कारुण्यपात्रं शतपत्रनेत्रं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ॥
संसारसारं निगमप्रचारं धर्मावतारं हृतभूमिभारम् ।
सदाविकारं सुखसिन्धुसारं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ॥
लक्ष्मीविलासं जगतां निवासं लङ्काविनाशं भुवनप्रकाशम् ।

भूदेववासं शरदिन्दुहासं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ॥
मन्दारमालं वचने रसालं गुणैर्विशालं हतसप्ततालम् ।
क्रव्यादकालं सुरलोकपालं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ॥
वेदान्तगानं सकलैः समानं हतारिमानं त्रिदशप्रधानम्।
गजेन्द्रयानं विगतावसानं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ॥
श्यामाभिरामं नयनाभिरामं गुणाभिरामं वचनाभिरामम् ।

विश्वप्रणामं कृतभक्तकामं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ॥
लीलाशरीरं रणरङ्गधीरं विश्वैकसारं रघुवंशहारम् ।
गम्भीरनादं जितसर्ववादं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ॥
खले कृतान्तं स्वजने विनीतं सामोपगीतं मनसाप्रतीतम्।
रागेण गीतं वचनादतीतं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ॥

श्रीशिवजी बोले
सुग्रीवके मित्र, परमपावन, सीताके पति, नवीन मेघके समान शरीरवाले, करुणाके सिन्धु और कमलके सदृश नेत्रवाले श्रीरामचन्द्र जी की में निरन्तर वन्दना करता हूँ।
असार संसारमें एकमात्रसारवस्तु, वेदोंका प्रचार करनेवाले, धर्मके साक्षात् अवतार, भूमि के भार का हरण करनेवाले, सदा अविकृत रहनेवाले और आनन्दसिन्धुके सार श्रीरामचन्द्र जी को मैं सदा नमस्कार करता हूँ।
लक्ष्मीके साथ विलास करनेवाले, जगत्‌के निवासस्थान, लंकाका विनाश करनेवाले, भुवनोंको प्रकाशित करनेवाले, ब्राह्मणोंको शरण देनेवाले और शारदीय चन्द्रमाके समान शुभ्र हास्यसे विभूषित श्रीरामचन्द्रको मैं सतत नमन करता हूँ।
सुगंधित व दिव्य मन्दारपुष्पोंकी माला धारण करनेवाले, रसीले वचन बोलनेवाले, गुणोंमें महान, सात ताल वृक्षोंका (एक साथ) भेदन करनेवाले, राक्षसोंके काल तथा देवलोकके पालक श्रीराम जी को मैं नमस्कार करता हूँ।
वेदान्त (उपनिषदों) द्वारा गेय, सबके साथ समान बर्ताव करनेवाले, शत्रुके मानका मर्दन करनेवाले, गजेन्द्रकी सवारी करनेवाले तथा अन्तरहित देव शिरोमणि श्रीरामचन्द्र जी को मैं सतत नमस्कार करता हूँ।
श्यामसुन्दर, नयनोंको आनन्द देनेवाले, गुणोंसे मनोहर, हृदयग्राही वचन बोलनेवाले, विश्ववन्दनीय और भक्तजनोंकी कामनाओंको पूरा करनेवाले श्रीरामचन्द्र जी को मैं निरन्तर प्रणाम करता हूँ। लीलामात्रके लिये शरीर धारण करनेवाले, रणस्थलीमें धीर, विश्वभरमें एकमात्र सारभूत, रघुवंशमें श्रेष्ठ, गम्भीर वाणी बोलनेवाले और समस्त वादोंको जीतनेवाले श्रीरामचन्द्र जी को मैं प्रतिक्षण प्रणाम करता हूँ।
दुष्टजनोंके लिये मृत्युरूप, अपने परिजनोंके प्रति नम्र भाववाले, सामवेदके द्वारा स्तुत, मनके भी अगोचर, प्रेमसे गान करनेयोग्य तथा वचनोंसे अतीत श्रीरामचन्द्रको मैं सर्वदा नमस्कार करता हूँ।

श्री रस्तू शुभम्

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