स्वर्णाकर्षण भैरव साधना का संक्षिप्त परिचय
भगवान भैरव शंकर के ही प्रतिरूप है, इनकी साधना से साधकों को शीघ्र मनोवांछित फल प्राप्त होता है, उनके सभी दुःख कष्ट, पीड़ा, रोग-शोक, दारिद्र एवं संकटों का शमन स्वतः हो जाता है, इनकी उपासना प्रत्येक जाति, वर्ण एवं आयु के स्त्री पुरुष कर सकते हैं।
Swarnakarshan bherav mantra for laxmi an power
इनमें से भी स्वर्णाकर्षण भैरव साधना तो अपने आप में अद्वितीय है, अभी तक कालभैरव बटुक भैरव दंडपाणि भैरव बकारादि भैरव आदि साधनाओं से सम्बन्धित जानकारी तो मिलती है, परन्तु स्वर्णाकर्षण भैरव साधना अपने आप में सर्वथा गोपनीय रही है, पहली बार यह साधना गुरु मुख से सीधे साधकों के पास प्राप्त हो रही हैं, इसलिए इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है।
यह एक ऐसी साधना है, जो सरल होते हुए भी महत्वपूर्ण है, इस साधना के द्वारा व्यक्ति अपने जीवन की समस्त आशाओं और आकांक्षाओं की पूर्ति कर सकता है, इस साधना के द्वारा अन्य साधनाओं में स्वतः सफलता मिल जाती है, और साबर साधनाओं तथा दैविक साधनाओं में साधक का समान रूप से अधिकार हो जाता है।
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स्वर्णाकर्षण भैरव यन्त्र
स्वर्णाकर्षण भैरव यन्त्र एक अद्वितीय यन्त्र है, जिसके प्रत्येक अक्षर वर्ण और बिन्दु का महत्व है, इसके चार भागों में चार पंचदशी यन्त्र अंकित है, जन समाज में भी प्रचलित है, कि “जिसके घर पन्द्रहीसा उसका क्या करे जगदीशा” साधक इस यन्त्र में देखेंगे कि पूर्व पश्चिम, उतर, दक्षिण चारों दिशाओं में
अलग-अलग वर्षों के क्रमों से पंचदशी यन्त्र अंकित किये हैं, जो समस्त विश्व की सम्पदा देने में समर्थ है, यह इस बात का प्रतीक है, कि व्यक्ति एक स्थान से ही नहीं अपितु विश्व के चारों कोनों से धन-धान्य समृद्धि प्राप्त करने में सक्षम हो सकेगा ।
चारों कोनों में लक्ष्मी का बीज रूप ‘श्रीं’ अंकित है, जो कि अखण्ड लक्ष्मी देने में समर्थ है, ऊपर और नीचे मिलाकर चारों कोनों में ॐ प्रणव का अंकन पूर्णता श्रेष्ठता और सफलता का सूचक है, इस साधना से भोग और ‘मोक्ष दोनों ही प्राप्त हो सकते हैं, इसीलिए शास्त्रों में बताया गया है, कि भौतिक दृष्टि से इस साधना में निम्नलिखित उपलब्धियां सम्भव है,
१. धन, २. धान्य, ३. भूमि, ४. उत्तम भवन, ५. सामाजिक कीति, ६. पूर्ण आयु, ७. सुविख्यात यश, ८. मानसिक शांति ९. वाहन, १०. पुत्र, ११. पौत्र, १२. राज्य उत्न्नति, १३. उत्तम स्वास्थ्य, १४. निरन्तर प्रगति, १५. प्रत्येक कार्य में सफलता, १६. जीवन में पूर्णता ।
इसी प्रकार आध्यात्मिक दृष्टि से भी इस साधना के द्वारा सोलह उप-लब्धियां प्राप्त होती है, जो कि निम्न प्रकारेण है।
१) प्रेम,
२) दया
३) स्नेह,
४) अपनत्व,
५) ममत्व,
६) दीन-दुखियों की सेवा करने की भावना,
७) मानसिक शांति,
८) अखण्ड समाधि,
९) ज्ञान,
१०) चिन्तन,
११) कुण्डलिनी जागरण,
१२) एकात्म भाव,
१३) ईश्वर दर्शन,
१४) तटस्थता,
१५) आत्मसंयम,
१६) सम्पूर्ण पृथ्वी स्थित प्राणियों में आत्मवत् भाव महसूस करना ।
यन्त्र के मध्य में वृत्त और उसके बीच में चौकोर और पुन वृत्त का तात्पर्य पूरे ब्रह्माण्ड में निहित शक्तियों को अपने आप में समाहित कर सिद्ध होने का भाव है, इसमें अंकित अक्षर समस्त ब्रह्माण्ड को देखने का भाव है, या दूसरे शाब्दों में सभी चक्र जागृत कर सहस्रार प्राप्त करने की क्रिया है, मध्य स्थान से
चारों तरफ निकले हुए त्रिशूल विश्व की रक्षा और आत्म द्वारा विश्व कल्याण भावना से संगुम्फित है ।
इस प्रकार से यह भैरव यन्त्र आत्मा को परमात्मा में विलीन करने तथा समस्त ब्रह्माण्ड की सिद्धियों को अपने आप में समाहित करने की क्रिया है इसके ।
द्वारा साधक मिट्टी के ढले को भी स्वर्ण में परिवर्तित कर अतुलनीय सम्पदा का स्वामी हो सकता है, इस सिद्धि के द्वारा एक तरफ जहां वह पूर्ण भौतिक सुख समृद्धि, यश और सम्मान प्राप्त करता है, वहीं दूसरी ओर इसके द्वारा साधक ब्रह्माण्ड में अपना वर्चस्व स्थापित कर अमरत्व प्राप्त करने में सफलता पाता है।
साधना विधि
सर्वप्रथम ऊर्ध्व पूर्व दक्षिण, उत्तर तथा पश्चिम की तरफ प्रणाम कर अंगन्यास करे ।
अंगन्यास
ॐ ह्रां अंगुष्ठान्यां नमः ।
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा
ॐ हृ मध्यमाभ्यां वषट्
ॐ हैं अनामिकाभ्यां वौषट् ।
ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां फट् ।
इसके पश्चात् नीचे लिखे अनुसार हृदयादि न्यास करना चाहिए।
हृदयादि न्यास
ॐ ह्रां हृदयाय नमः
ॐ ह्रा शिरस स्वाहा ।
ॐ हृ शिखाये वषट् ।
ॐ हैं कवचाय हूं
ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्
ॐ हृः करतलकरपृष्ठाभ्यां फट् ।
न्यास के पश्चात ध्यान करना चाहिए, श्री बटुक भैरव के ध्यान तीन प्रकार के हैं- १. सात्विक २. राजसिक ३. तामसिक,
तीनों प्रकारों के कपानों को नीचे अलग-अलग लिखा जा रहा है।
सात्विक ध्यान
‘सात्विक ध्यान’ इस प्रकार है-
वन्दे बालं स्फटिक सदृशं, कुण्डलोद्भासिवक्त्रम् दिव्याकल्पैर्नवमणिमयैः, कंकिणी नूपुराद्य ।
दीप्ताकारं विशदवदनं, सुप्रसन्नं त्रिनेत्रं
हस्ताब्जाभ्यां बटुकमनिशं, शूलदण्डी दधानम् ।।
राजसिक ध्यान
राजसिक ध्यान इस प्रकार है-
उद्यद्भास्करसन्निभं त्रिनयनं, रक्तांगरागस्रजम् ।
स्मेरास्यं वरदं कपालमभयं, शूलं दधानं करैः ।।
नीलग्रोवमुदार भूषणशतं, शीतांशुचूडोज्वलम् ।
बन्धुकारुणवाससं भयहरं, देवं सदा भावये ।।
तामसिक ध्यान
तामसिक ध्यान इस प्रकार है:
ध्यायेन्नीलाद्रिकान्ति शशिकलघरं, मुण्डमालं महेशं ।
दिग्वस्त्रं पिंगलाक्षं उमरुमथ सुणि, खड्गशूलाभयांति ।
नागं घण्टां कपालं कर सरसिरुहैः, विभ्रतं भीमदंष्ट्रम ।
सर्पाकल्वं त्रिनेत्रं मणिमय विलस-त्किकिणी नूपुराढ्यम् ।।
१- सात्विक ध्यान से अकाल मृत्यु का नाश, आयु की वृद्धि, नारोग्य एवं मुक्ति पद की प्राप्ति होती है।
२- राजसिक ध्यान से धर्म की वृद्धि कामनाओं की पूर्ति तथा आर्थिक सफलता प्राप्त होती है।
३- तामसिक ध्यान से शत्रु कृत कार्य समाप्त होते हैं, प्रात्रओं पर विजय मुकदमे में सफलता तथा भूत, प्रेत, पिशाच आदि से मुक्ति मिलती है।
प्राण प्रतिष्ठा
इसके बाद यन्त्र को सामने रख उसमें भैरव का चिन्तन कर २१ बार निम्न मंत्र का उच्चारण करने से यंत्रचेतन तथा आत्माचेतन स्वतः हो जाता है।
अस्य प्राण प्रतिष्ठा मन्त्रस्य ब्रह्माविष्णुमहेश्वरा ऋषये ऋग्यजुः सामानि छन्दासी, चैतन्य शक्ति परमात्मादेवता प्राण प्रतिष्ठां विनियोग: ।
ॐ ग्रां ऋ कृ यं रं लं वंशं षं सं हं सं हं बं क्षं हं सः ममः प्राण इह प्राणा मम जीवन इह स्थितः, ममेह सर्वेद्रियाणि, मम वाड्मनश् चक्षु स्रोत घ्राणत्वग रसना प्राणा इहागत्य सुखस्थिरा स्तिष्ठन्ति स्वाहा।
इसके बाद निम्न मन्त्र का हकीक माला से जप करे, इस साधना में मात्र हकीक माला का प्रयोग ही किया जाना चाहिए, जिससे कि अपूर्व सिद्धि एवं सफलता प्राप्त हो सके, यदि किसी कारण से हकीक माला न हो तो रुद्राक्ष की माला अथवा मू’गे की माला का प्रयोग कर सकते हैं।
मन्त्र
ॐ ऐं क्लां क्लीं क्लू ह्रां ह्रीं ह्रसः वं आपदुद्धारणाय अजामल-बद्धाय सोकेश्वराय स्वर्णाकर्षण भैरवाय मम दारिद्रयविद्वषणाय ॐ महाभैरवाय नमः ।
यह मन्त्र अपने आप में अत्यन्त महत्वपूर्ण और शक्तियुक्त है, क्योंकि यह विशिष्ट क्रम से निर्मित है –
यहतु भैरव मंत्रेण देवानामपि दुर्लभा । गोपनीया प्रयत्नेन सर्व सम्पत् कारिता ।।
वस्तुतः यह मन्त्र अत्यधिक महत्वपूर्ण तथा सभी प्रकार की सिद्धि देने में समर्थ है, मन्त्र जप समाप्ति के बाद भैरव को प्रणाम करे, और साधना में पूर्ण सफलता की कामना करे।
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