गुरु की महादशा के फल
जीवन में गुरु की महादशा का अत्यंत महत्व पूर्ण स्थान हे।
गुरु की महादशा में व्यक्ति नई नई स्किल्स सीखता हे , तथा उच्च शिक्षा प्राप्त करता हे ।
गुरु की महादशा जीवन में हर तरीके से लाभ ही लाभ करती हे ।
वही किसी किसी ग्रह के अंतर्दशा में आने पर विपरीत परिणाम भी मिलते हे।
गुरु की महादशा हो तो राजा से धन, धान्य, आदर हो, पुत्र, मित्र और रत्न लाभ, नीरोगता, शत्रु से विजय, सुख तथा मनोरथ (इच्छित वस्तु) प्राप्त होती है।
जैव्यन्तरे सुतोत्पत्तिर्धनधर्मार्थगौरवम् । हेम्नश्चाऽम्बरलाभश्च वर्णेभ्यो ह्यतिसञ्चयः ॥
गुरु की महादशा में गुरु की अन्तर्दशा हो तो पुत्र उत्पत्ति, धन, कर्म और गौरव की प्राप्ति सब वर्णों से सुवर्ण, वस्त्र का लाभ हो ।
वेश्या – स्त्री – मद्यपानैश्च भूषितः सुखवर्जितः । विलुप्तधर्मवस्त्रोऽसौ सौरिर्गुर्वनुगो
गुरु की महादशा में शनि की अन्तर्दशा हो तो मनुष्य वेश्या-खी और महापान से भूषित, सुखहीन, धर्म तथा वस्त्र से हीन हो जाता है।
स्वस्थो मित्रयुतो भोगी गुरुदेवाग्निभक्तिकृत् । सुकृताचरणे शक्तो जीवस्यान्तर्गते बुधे ॥
गुरु की महादशा में बुध की अन्तर्दशा हो तो स्वस्थ, मित्रों से युत, भोगी, गुरु-देव-अग्नि का भक्त, सत्कर्म करने वाला होता है।
पुत्रबन्धुक्षतो भोगी युक्तः स्वस्थानवर्जितः । परिभ्रमति सर्वत्र केतावन्तर्गते गुरौ ॥
गुरु की महादशा में केतु की अन्तर्दशा हो तो पुत्र तथा बन्धुओं से दुःख पाने वाला, भोगी, अपने स्थान से भ्रष्ट, इधर-उधर घूमने वाला होता है।॥
कलहं शत्रुवैरं च वित्तमानसनिर्वृतिः । स्त्रीभ्यो विघातमाप्नोति जीवस्यान्तर्गते सिते ॥
गुरु की महादशा में शुक्र की अन्तर्दशा हो तो लड़ाई, शत्रु से शत्रुता, धन और मानसिक चिन्ता तथा स्त्रियों से कष्ट प्राप्त होता है।।
रणे जयं च शत्रूणां नृपपूजा च लभ्यते । प्रचण्डसाहसाङ्गैश्च जीवस्यान्तर्गते रवौ ॥
गुरु की महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा हो तो शत्रुओं से विजय, सुख, राजा से आदर और साहस की वृद्धि होती है।
बहुस्त्रीरतिभोगश्च रिपुरोगः विवर्जितः । नृपतुल्यो भवेन्नित्यं चन्द्रे गुर्वन्तरङ्गते ॥
गुरु की महादशा में चन्द्रमा की अन्तर्दशा हो तो बहुत स्त्रियों का सुख, रोग और शत्रुओं से रहित, राजा के समान सुख लाभ होता है।॥
तीक्ष्णशौर्यरिपुं जित्वा धनं कीर्तिमवाप्नुयात् । सुखसौभाग्यमारोग्यं गुरोरन्तर्गते कुजे ॥
गुरु की महादशा में मङ्गल की अन्तर्दशा हो तो बड़े-बड़े प्रचण्ड शत्रुओं को जीतने में कीर्ति, सुख, आरोग्य, सौभाग्य का लाभ होता है।॥
बन्धूद्वेगं रुजञ्चैव कलहं मरणाद्भयम् । स्वस्थानच्युतिमाप्नोति राह्वन्तर्गते गुरोः ॥
गुरु की महादशा में राहु की अंतर्दशा हो तो बंधुओं से लड़ाई , रोग , मृत्यु भय और पदच्युति होती हे।
श्री रस्तू शुभम्