श्री प्राप्ति तथा लक्ष्मी प्राप्ति का यन्त्र
इस सूक्त का पाठ करने से लक्ष्मी, तेजस्विता, आयु, आरोग्य आदि सभी तथा पवित्रता एवं गौरवशाली वस्तुएँ आदि की वृद्धि करती हैं। और धन-धान्य, सुपुत्र लाभ तथा सौ वर्ष तक की दीर्घ आयु इसके जप मात्र से ही मिल जाया करती हैं।
इस यन्त्र को भोजपत्र पर, चाँदी पर या सोने के पत्र पर बनवाना चाहिए। भोजपत्र पर जब बने तब गोरोचन और कनेर की कलम से बने फिर चाँदी या सोने की ताबीज में भरकर किसी एक नवरात्र में पाठ, होम, जापादि कराएँ जाएँ। पुनः इसको पूजा के स्थान में रखकर प्रतिदिन पूजा कर लक्ष्मी सूक्त का एक पाठ प्रेमपूर्वक करें।
अटूट सम्पत्ति आपके यहाँ रहेगी और लक्ष्मी का वास सदैव आपके था में रहेगा। घर में सुख शान्ति होगी।
लक्ष्मी सूक्तं
सरसिजनिलयेसरोजहस्ते
धवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभे ।
भगवतिहरिवल्लभे
मनोज्ञे त्रिभुवन भूतिकरी प्रसीद महाम ॥ १ ॥
हे भगवती हरिवल्लभे लक्ष्मी माता। कमल आपका निवास स्थान है, आप कर में कमल लिए रहती हो। आप अति स्वच्छ धवल वस्त्र, चन्दन और माला धारण किये रहती हो। तुम सबके मन की बातें जानती हो, त्रिभुवन की सम्पदा प्राप्त कराने वाली हो। मेरे ऊपर प्रसन्न हो जाइये।
धनमग्नि धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसु।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमस्सु
अग्नि धन है, वायु धन है, जल धन है, इन्द्र धन है, वृहस्पति धन है,
वरुण धन हैं ये सब मुझे प्राप्त होवें। इनके द्वारा मुझे धन मिले।
वैनतेय सोमं पिव सोमं पिवतु वृत्रहा।
सोमं धनस्य सोमिनो महां ददातु सोमिनः ॥ ३ ॥
गरुड़ जी सोम पान कर, वृत्रासुर को मारने वाले इन्द्र भी सोम पान करें। ये सोमपायी मुझे सोमयुक्त धन प्रदान करें।
न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो ना शुभामतिः । भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां सूक्तं जापिनाम् ॥ ४ ॥
जो इस सूक्त का पाठ करने वाले पुण्यात्मा भक्त हैं, उनकी क्रोध मत्सरता, लोभ तथा पाप कर्मों में मति नहीं होती है।
पद्मानने पद्मऊरू पद्माक्षी पद्मसम्भवे। तन्मे भजसि पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥ ५
हे पद्मानने। हे लक्ष्मी देवि! आपका श्रीमुख पद्म सरिस है, ऊरु पद्म समान तथा नेत्र भी पद्म सदृश हैं आप पथ से पैदा हुई हैं। अतः हे पंचाधिक्ष। मेरे ऊपर दया दृष्टि कीजिए जिससे मैं सुख को प्राप्त होऊँ।
विष्णुपलीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम्। विष्णुप्रियां सखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम ॥ ६ ॥
जो माता लक्ष्मी देवी विष्णु की पत्नी हैं, क्षमा स्वरूपा हैं, माधव भगवान की प्यारी हैं, सबकी सुहदा हैं, उन अच्युत वल्लभा को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।
महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपल्यै च धीमहि। तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् (लक्ष्मी गायत्री) ॥ ७॥
मैं उन महादेवी को जानता हूँ, उन विष्णु भगवान की पत्नी का ध्यान करता हूँ, वे लक्ष्मी जी हमें धर्म कार्यों में प्रेरित करें, हम पर दया दृष्टि रखें।
पद्मानने पद्मप्रिये विश्वप्रिये त्वत्पादपद्ममयिपद्मिनि
पद्मपत्रे पद्मदलायताक्षि विश्वमनोऽनुकूले सन्निधत्स्व ॥ ८ ॥
हे विश्व की प्यारी लक्ष्मीजी! आप पद्मानना हैं पद्मनि हैं, पद्मवाहिनी हैं, पद्मप्रिया हैं, पद्मदल सदृश आपके नयन हैं। आप विश्व की प्यारी और विश्वम्भर के मनोनुकूल हैं, आपके पाद पद्म मेरे हृदय में सदा विराजमान रहें।
आनन्दः कर्दमः श्रीदश्चिक्लीत इति विश्रुताः । ऋषयः श्रियः पुत्राश्च मयि श्रीर्देवि देवता ॥ ९॥
आनन्द, कर्दम, श्रीद, चिक्लीत ये चार जो प्रसिद्ध पुत्र हैं जो कि इस सूक्त के ऋषि भी हैं और इस सूक्त के मुख्य देवता लक्ष्मी जी के पुत्र ही हैं वे मुझे श्री दें।
ऋणरोगादि दारिद्रयं पापक्षुदपमृत्यवः ।
भयशोक मनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥ १०॥
हे महालक्ष्मी! मेरी ऋण, रोगादि बाधाएँ दारिद्रय पाप अपमृत्यु, भय,होक एवं समस्त मानसिक ताप आदि सदा के लिए नष्ट हों, जिससे कि में सर्वदा सुख भोगूँ।
श्री वर्च स्वमायुष्य मारोग्य मा
विधात् शोभमानं धनं,धान्यं,पशुं,बहुपुत्र
लाभम सत संवत्सर्म मा महीयते दीर्घमायुः ॥ ११ ॥
इस सूक्त का पाठ करने से लक्ष्मी, तेजस्विता, आयु, आरोग्य आदि सभी तथा पवित्रता एवं गौरवशाली वस्तुएँ वृद्धि को पाती हैं और धन-धान्य, सुपुत्र लाभ तथा सौ वर्ष तक की दीर्घ आयु इसके जप मात्र से ही मिल जाया करती हैं।
श्री रस्तू शुभम्