शुक्र का बारह भावों पर प्रभाव

Spread the love

शुक्र का बारह भावों पर प्रभाव

द्वादशभावस्थ शुक्र फल

जनुषि लग्नगते भृगुनन्दने भवति कार्यरतः परपण्डितः । विमलशिल्पयुते सदने रतो भवति कौतुकहा विधिचेष्टितः ॥१॥

प्रथम भाव में शुक्र हो तो जातक कार्य में तत्पर,पण्डित, उत्तम शिल्पयुत घर माननेवाला, विधि (प्रारब्ध) को प्रबल मानने वाला होता है।॥१॥

परधनेन धनी धनगे भृगौ भवति योषिति वित्तपरो नरः ।रजतसीसधनी गुणशैशवः कृशतनुः सुवचा बहुपालकः ॥२॥

द्वितीय भाव में शुक्र हो तो दूसरों के धन से धनवान्, स्त्रियों को घर देनेवाला, चाँदी, सीसा आदि व्यापार से धनवान्, सदा लड़कपन से युक्त दुर्बल देह, प्रियवक्ता और बहुतों को पालनेवाला होता है।॥२॥

सहजमन्दिरवर्तिनि भार्गवे प्रचुरमोहयुतो भगिनीसुते । भवति लोचनरोगसमन्वितो धनयुतः प्रियवाक् च सदम्बरः ॥३॥

तृतीय भाव में शुक्र हो तो वह मनुष्य अपने भागिनेय (भानजा) में प्रेग रखनेवाला, नेत्र रोग वाला, धनवान्, मधुर वक्ता और स्वच्छ वस्त्र धारण करने वाला होता है।॥३॥

भवति बन्धुगते भृगुजे नरो बहुकलत्रसुतेन समावृतः । सुरमते सुषमाढ्यवरे गृहे वसनपानविलाससमावृतः ॥४॥

चतुर्थ भाव में शुक्र हो तो बहुत स्त्री और सन्तान से युक्त, सुषम (अतिशय शोभा) से युक्त, सुन्दर भवन में रहनेवाला और अन्न-पान-वा आदि के विलासों से सम्पन्न होता है।।४।।

तनयमन्दिरगे भृगुनन्दने बहुसुतो वरबुद्धियुतो भवेत् ।
बहुधनो गुणवान् वरनायको भवति चापि विलासवतीप्रियः ॥५॥

पञ्चम भाव में शुक्र हो तो बहुत सन्तान वाला, उत्तम बुद्धिमान्,
धनवान्, गुणवान्, श्रेष्ठ नेत्र और चतुरा स्त्री का पति होता है।॥५॥

भवति वै कुशलोऽद्भुतपण्डितो रिपुगृहे भृगुजेऽस्तगते नरः ।
जयति वैरिबलं निजतुङ्गगे भृगुसुते शुभगे किल षष्ठगे ॥६॥

यदि शत्रु की राशि में या अस्त होकर शुक्र षष्ठभाव में हो तो चतुर ता की राशि में हो तो शत्रुओं को जीतनेवाला होता है। याने इनके मत से षष्ठत अद्भुत (चमत्कार युक्त) पण्डित होता है। शुक्र यदि अपने उच्च या शुभा शुक्र सर्वदा शुभप्रद होता है।॥६॥

युवतिमन्दिरगे च सिते नरो बहुसुतेन धनेन समन्वितः । विमलवंशभवप्रमदापतिर्भवति चारुवपुर्मुदितः सुखी ॥७॥

सप्तम भाव में शुक्र हो तो बहुत पुत्र और जन वाला, उत्तम कुलोत्पन्न स्त्री का पति, सुन्दर शरीर, प्रसन्न और सुख युक्त होता है।।७।।

निधनसद्मगते भृगुजे जनो विमलधर्मरतो नृपसेवकः । भवति मांसप्रियः पृथुलोचनो निधनमेति चतुर्थवयस्यपि ॥८॥

अष्टम भाव में शुक्र हो तो धर्मात्मा, राजा का सेवक, मत्स्य-मांस प्रिय, विशालनेत्र तथा चतुर्थवयस (७५ वर्ष के ऊपर) में मृत्यु पानेवाला होता है।।८।।

विमलतीर्थपरोऽच्छतनुः सुखी सुरवरद्विजवर्णरतः शुचिः । निजभुजार्जितभाग्यमहोत्सवो भवति धर्मगते भृगुजे नरः ॥९॥

नवम भाव में शुक्र हो तो सुन्दर शरीर, सुखी, देव-ब्राह्मणों का भक्त, पवित्रहृदय, अपने भुजबल से धन-सुख उपार्जन करनेवाला होता है।।९।।

दशममन्दिरगे भृगुवंशजे बधिरबन्धुयुतः स च भोगवान् । वनगतोऽपि च राज्यफलं लभेत् समरसुन्दरवेषसमन्वितः ॥१०॥

दशम भाव में शुक्र हो तो उसका भाई बहिरा होता है, वह स्वयं भोगी और जङ्गल में भी राजा के समान सुखी, देवता समान सुन्दर शरीर वाला होता है।।१०।।

आयगभावगते भृगुनन्दनो वरगुणावहितोऽप्यनलव्रतः । मदनतुल्यवपुः सुखभाजनं भवति हास्यरतिः प्रियदर्शनः ॥११॥

एकादश भाव में शुक्र हो तो उत्तम गुणों से युक्त, अग्निहोत्री, कामदेव के समान सुन्दर, सुखभागी, हास्य प्रिय और दर्शनीय होता है।॥११॥

जनुषि वा व्ययवर्तिनि भार्गवे भवति रोगयुतः प्रथमं नरः । तदनु दम्भपरायणचेतनः कृशबलो मलिनः सहितः सदा ॥१२॥

जन्म के समय १२वें भाव में शुक्र हो तो बाल्यावस्था में रोगी, पश्चात् कृश शरीर और दम्भ से युक्त मलिन पुरुष होता है।॥१२॥

श्री रस्तू शुभम्

Leave a Comment

Astro Kushal