वैदिक दिनचर्या
इस आर्टिकल में ऐसा दैनिक नित्यकर्म, साधना और श्लोक बताए गए है जिसका हर सनातनी अपनी व्यस्त जीवनशैली में कम से कम समय निकालकर पालन कर सकता है।

इस पोस्ट में दिया गया नित्यकर्म धर्मशास्त्र, आयुर्वेद, ज्योतिष शास्त्र और आज के मॉडर्न जीवन शैली को ध्यान में रखकर बनाया गया है। जिसे अपनाने वाले का जीवन स्वस्थ, शांतिमय, धार्मिक और समृद्ध बन जाएगा।
दीर्घायु जीवन के लिए वैदिक दिनचर्या
ब्रह्ममुहुर्त में उठने के फायदे
ब्रह्म मुहूर्त जो व्यक्ति अपने स्वास्थ्य, बुद्धि और सुख को सदा बनाए रख्खना चाहे, वो प्रातःकाल में ब्रह्म मुहूर्त में अचूक उठ जाए।
ब्रह्ममुहुर्त आठों प्रहरों का राजा है।

इस समय बिस्तर त्याग कर दीजिए। शास्त्र कहते है इस समय प्रकृति अमृत बरसाती है। इस समय चलती वायु को हमारे पूर्वजों ने प्रकृति की दी गयी निःशुल्क औषधि कहा है।
इसीलिए कहते है कि, ‘सौ दवा, भोर की एक हवा।’
“One morning breath is equal to Hundred medicines
यह समय परमात्मा से बातचीत करने का समय है। इस समय परमात्मा का नाम-स्मरण कर भगवद् प्राप्ति के लिए प्रयास करने पर मनुष्य की बुद्धि स्थिर, हृदय शांत और शरीर दीर्घायु होता है।
हमारे ऋषियों ने यह सिद्ध किया है कि आरोग्य, दीर्घ-जीवन, सौन्दर्य, धन, विद्या, बल, तेज, प्रार्थना, ध्यान, आराधना व अध्ययन हेतु ब्रह्म मुहूर्त अत्यधिक फल देता है।
इसलिए हमारे पूर्वज कहते थे कि, हर रात के पिछले प्रहर में, एक एक करके मनुष्य की संपत्ति लुटती रहती है। • इसलिए ‘जो सोवत है सो खोवत है, जो जागत है सो पावत है।’
One who sleeps loses, one who wakes achieves.
दीर्घायु जीवन के लिए वैदिक दिनचर्या
ब्रह्ममुहुर्त में कैसे उठें?
1. दिनभर में शरीर को थकान हो इतना शारीरिक काम जरूर करें। शरीर को तामसिक और आलसी ना होने दें।
2. प्रयास करें कि शाम का भोजन प्रसाद सूर्यास्त से पहले पा लें। देर से देर 7:30 तक पा लें। और वह भोजन हल्का रखें। पेट भर के ना खाएँ।
3. रात को 9 बजे शयनचर्या यानी दो जाए नहीं तो अंतिम से अंतिम 10 बजे।
4. सोने से पूर्व अपने मन को आज्ञा दें कि प्रातःकाल इस समय पर उठना हैं। मनुष्य का मन उसको उसी समय पर जगा देगा। Alarm का सहारा ना लें उतना ही उत्तम है।
दीर्घायु जीवन के लिए वैदिक दिनचर्या
अगर इतना आप 5-6 दिन कर लोगे तो ब्रह्म मुहूर्त में आसानी से उठ जाओगे। फिर उठकर सबसे पहले आपको करना हे
2. कर दर्शन
प्रातःकाल अपनी आँखें खोलने से पहले ही अपनी हथेलियों को आपस में रगड़ कर अपनी आँखों पर रखें और फिर धीरे से आखें खोलकर अपनी हथेलियों को आपस में मिलाकर पुस्तक की तरह खोल के दर्शन करते हुए यह श्लोक बोलें :
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती । करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्।।
अर्थात् :
‘मेरे हाथ के अग्रभाग में माता लक्ष्मी, मध्यभाग में माता सरस्वती तथा मूल भाग में गोविन्द निवास करते हैं। हर प्रभात को में सर्वप्रथम हथेलियों में इनका दर्शन करूँ।
भाव :
कर दर्शन के समय हृदय में यह भाव रखें की ‘आज के दिन में इन हाथों से अपना कर्तव्य कर जो लक्ष्मी (धन) और सरस्वती (विद्या) का अर्जन करूँ उनका उपयोग धर्म और गोविंद की सेवा में करूँ।’
‘ऐसी दिनभर मुझमें सुबुद्धि बनी रहे, जिससे इन हाथों से में धर्म का पालन करूँ, अधर्म का नाश करूँ और साधुजनों की सेवा करूँ और मेरे द्वारा कोई बुरा कार्य न हो।’
फिर इसके तुरंत बाद
3. पाद स्पर्श
कर दर्शन के बाद पहले दायें पैर को भूमि पर रख कर हाथ से पृथ्वी का स्पर्श कर फिर मस्तक पर लगाइए और पांव रखने के लिए इस श्लोक से धरती माता से क्षमा मागिए
समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते । विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्श क्षमश्वमेव ॥
अर्थात् :
समुद्ररूपी वस्त्रों को धारण करने वाली, पर्वतरूपी स्तनों से शोभित विष्णुपत्नी, मेरे द्वारा होने वाले पादस्पर्श के लिए आप मुझे क्षमा करें।
भाव :
‘हे धरती माता, मुझे आपके ऊपर पैर रखने में बहुत संकोच होता है, आप भगवान की शक्ति और मेरी माता हो, परंतु रख ही रहे है तो हमे बुद्धि और शक्ति देना की हम आपके ऊपर धर्म के काम करें और अधर्म का बोझ हटाएँ
सदुपरांत अपने इष्टदेव तथा विभिन्न देवताओं का विभिन्न उद्देश्यों के लिए नाम-स्मरण कर सकते हो,
कौनसे भगवान का नाम स्मरण करे कुछ उदाहरण प्रस्तुत हे
रोग नाश: सोमनाथ, वैद्यनाथ, धन्वन्तरि अश्विनीकमार
सौभाग्य वृद्धि : उमा, उषा, सीता, लक्ष्मी तथा गंगा
संकटनाश: भगवान शिव, भगवान विष्णु हरिश्चन्द्र, हनुमान तथा बलराम
दीर्घायु हेतु : आठ चिरंजीवी वेदव्यास, हनुमान, अश्वत्थामा, बलि, विभीषण. कृपाचार्य, परशुराम तथा मार्कण्डेयजी
पोरयाचा से मुक्ति: राम, लक्ष्मण, सीता, सुग्रीव तथा हनुमानजी
घोर पापों के नाश: बारह ज्योतिर्लिंगों का नाम: श्रीसोमनाथ, श्रीमल्लिकार्जुन, श्रीमहाकाल, कंकारेश्वर, वैद्यनाथ, श्रीभीमशंकर, श्रीरामेश्वर, श्रीनागेश्वर, श्रीविश्वनाथ, श्रीत्र्यम्बकेश्वर, श्रीकेदारनाथ, और श्रीघुश्मेश्वर…
विषों से रक्षा: कपिला गौ, कालिय, अनन्त, वासुकि तथा तक्षक नाग
संयमपूर्ण जीवन : सनत्कुमार, नारदजी, शुकदेव, भीष्म तथा हनुमानजी
उपरोक्त में से कोई नहीं तो : भगवान नारायण
उपरोक्त सभी के लिए भी : भगवान नारायण
फिर अपने बिस्तर से उतरकर तुरंत ही 30 दंड (Pushups) लगाएँ, इससे आपका शरीर गरम हो जाएगा, शरीर से सारा तामस निकल जाएगा और इसके बाद आप सारे काम एकदम फुर्ती से करने लगोगे…
तत्पश्चात् तुरंत ही अपना बिस्तर सही से बना लें, बिन बनाया बिस्तर घर और घरवालों में तामसिकता और आलस्य फैलाता है।
इसके बाद
मांगलिक वस्तुओं का दर्शन करें, जैसे की भगवान, गौ, तुलसी, गंगा, पीपल, चंदन, सोना, शंख, दर्पण व मणि।
फिर जाकर, माता-पिता, गुरु व अपने से बड़ों को प्रणाम करें, इससे आयु, विद्या, कीर्ति तथा बल की वृद्धि होती है।
उसके बाद
4. उषापान
रात में आपको सोने से पहले तांबे के बर्तन में जल भरकर सोना चाहिए। सुबह को वह जल क्षमतानुसार 2-4 गिलास पी लीजिए। रात की जामा हुई लार जठर के लिए अमृत औषधि समान होती है, उसको प्रतिदिन पानी पीकर जठर तक पहुँचाने से पाचक ग्रंथियाँ स्वस्थ रहती है।

यदि आपके पास ताँबे का कोई बर्तन नहीं है तो बसा लें। और यदि नहीं बसा सकते तो सादे पानी को गुनगुना गरम करके पी लीजिए।
आयुर्वेद कहता है की यह लंबे समय का अमृत है, इससे कफ, वायु और पित्त त्रिदोष का नाश होता है, पेट के विकार दूर हो जाते हैं, बुढ़ापा मनुष्य के पास नहीं फटकता, बवासीर, प्रमेह, सिर की पीड़ा आदि रोग दूर हो जाते हैं और शरीर की ग्रंथियाँ और हार्मोन्स संतुलित रहते है।
और पानी हमेशा बैठकर पीजिए, (इसे हल्के में नहीं लीजिएगा) उससे बुढ़ापे में भी जोड़ो का दर्द कभी नहीं होता।
शौच क्रिया….10 मिनट
एक स्वस्थ मनुष्य को उषापन के बाद कुछ समय में ही प्राकृतिक रूप से शौच का वेग होगा, तब मलासन में बैठकर बिना किसी दबाव के शौच करना चाहिए।
यदि पश्चिमी रीत का शौचालय है तो पैरो तले पाट रख सकते है।
मलासन में ही क्यों?
इससे पेट सरलता से और अच्छे से साफ़ होता है, आंतों के मांसपेशियाँ स्वस्थ रहती है, जिससे आंत्र रोग नहीं होते, मल नहीं ठहरा रहता और कब्ज नहीं होता।
शौच के समय अपनी शिखा खोल दें, और अपने ऊपर नीचे के दांतों को ज़ोर से सटाकर रक्खें। इससे दांत अत्यंत ही मज़बूत बने रहते है और बुढ़ापे में भी साथ देते है।
शौच के पश्चात शुद्धि :
नाभि से नीचे बायें हाथ से और नाभि से ऊपर दाहिने हाथ से काम लेना चाहिए। अतः शौच के बाद बायें हाथ से शुद्धि करनी चाहिए। मलत्याग के बाद बारह बार और मूत्र त्याग के बाद चार बार कुल्ला करना चाहिए।
जिसका अंतःकरण (चेतना) शुद्ध नहीं है, वह दुष्टात्मा मनुष्य हज़ार बार मिट्टी लगाने पर, संपूर्ण पवित्र नदियों के सी घड़े जल से धोने पर भी शुद्ध नहीं होता।
6. दंत धावन
5 मिनट
पेट की सफ़ाई के पश्चात दांत की सफ़ाई करनी चाहिए। जिसके लिए नीम, करंज, बबूल, आम या दालचीनी के दातुन का उपयोग करना उत्तम होता हैं।
निम की दातुन से दांत स्वस्थ रहते हे, अमरूद की दातुन से मसूड़े मजबूत होते है, बेल और खेरकी दातुन्से ऐश्वर्यकी प्राप्ति होती है, कदम्बसे रोग नाश होता है. अतिमुक्त से धनका लाभ होता है, आपक (अडूमा। की दातुनसे गौरवकी प्राप्ति होती है. पीपल मन देता है, गिरीषकी दातून करनेसे सब प्रकार की सम्पती प्राप्त होती है।
आयुर्वेद के अनुसार दातुन करने से ना ही मात्र मसूड़े और दांत मज़बूत बनते है परंतु बुद्धि, आयु और प्राण की भी वृद्धि होती है। तदुपरांत अलग अलग औषधि से दातुन करने से अलग अलग ग्रह-दोष का भी नाश होता है।
यदि आपके निवास स्थान पर दातुन की व्यवस्था करना कठिन है तो आप घर पर आयुर्वेदिक दंतमंजन सरलता से बना सकते हो।
1. देसी गायके गोबर की राख + नमक
2. त्रिफला चूर्ण + फिटकरी + + नमक + कर्पूर + काली मिर्च
इनमें से किसी भी एक मिश्रण को एक डिब्बी में भर लीजिए और उसे अपनी उँगली से दांतों पर प्रतिदिन प्रभात काल में घिसकर दंत धावन कीजिए।
प्रवास में यदि यह भी उपलब्ध ना हो तो नींबू और नमक को मिलाकर दांतों पर घिसने से भी अच्छा दंत धावन किया जा सकता है।
जिह्वा निर्लेखनम
2 मिनट
पाश्चात्य देशों में अज्ञान की वजह से सब टूथब्रश से अपनी जीभ को साफ़ करते है। जो की कभी नहीं करना चाहिए।
दंत धावन के पश्चात जिह्वा की सफ़ाई के लिए दातुन को बीच से लंबस्वरूप आधा कर उससे जीभ पर शांति से कुरेद सकते है, या फिर लोहे, ताँबे, या चाँदी से बनी जीभी (टंग क्लीनर) से सफ़ाई करनी चाहिए।
और फिर उसके बाद
कवल गण्डूष.
भारतीयों की यह पुरानी आदत जो आज ज़्यादातर भारतीय भूल गए है, अभी मॉडर्न समय में Oil Pulling के नाम से पुनः प्रचलित हो रही है।
क्या है कवल गण्डूष?
कवल अर्थात् कुल्ला करना और गण्डूष अर्थात् द्रव्य मुँह में भरकर रखना।
हालाँकि आज कल के समय में हम मात्र जल से कुल्ला करते है, वो भी अधिक से अधिक कुछ सेकंड के लिए, जो की पर्याप्त नहीं होता।
कवल गण्डूष के फ़ायदे,
1. दांतों में क्षरण और सड़न नहीं होने देता,
2. दांतों की जड़ें गहरी बनाता है,
3. मुँह से दुर्गंध मिटाता है,
4. चेहरे का ढीलापन हटाता है,
5. आवाज़ गहरी बनाता है,
6. मसूड़ों से खून रोकता है,
7. जबड़े मज़बूत बनाता है,
8. होंठ, मुँह और गले को सूखने नहीं देता,
9. होंठ नहीं फटने देता,
10. गर्दन, शीर्ष, कान और आँखों की बीमारियां मिटाता है..
11. लार और अन्य ग्रंथियों में से toxins निकालकर बैक्टीरिया हटाता है,
12. स्वाद संवेदना बढ़ाता है जिससे हर भोजन में स्वाद बढ़ता है,
13. दांत का दर्द और जिंजीनाहट (sensetivity) हटाता है,
14. दांत सख्त से सख्त खाने को भी चबा सकते हैं।
कैसे करते है कवल गण्डूष?
मुँह में एक घूँट जितना तिल का तेल (Sesame Oil) या नारियल का तेल भरके पूरे मुँह के कोने कोने में अच्छे से घुमाना और कुल्ला कीजिए। कुछ समय तक कुल्ला करने के बाद जब द्रव्य पतला होकर सफ़ेद हो जाए तब उसे बाहर निकल दें। यह हुआ कवल, जो की प्रतिदिन करना चाहिए।
Kaval (Swish)
Gandush (Fill + Hold)
अगर मुँह जल गया हो, छाले पड़े हो या कोई घाँव हुआ हो उस समय तिल के तेल की जगह घी और दूध का मिश्रण से गण्डूष करने पर या फिर मधु (Honey) को मात्र मुँह में भर के रखने से अत्यंत लाभ मिलता है।
कवल प्रतिदिन 1-3 मिनट तो करना ही चाहिए। गण्डूष सप्ताह में कम से कम एक बार 10 से 15 मिनट करना चाहिए। यदि यह किया तो 100 वर्ष की उम्र में भी आपके दांत मज़बूत और चमकीले होंगे उसकी गारंटी हम देते है।
अब कवल गण्डूष के तुरंत पश्चात करना चाहिए…
9. स्नान…….15 मिनट
शास्त्र कहते है कि स्नान किये विना जो पुण्यकर्म किया जाता है उसे राक्षस ग्रहण करते है। इसलिए प्रतिदिन स्नान करना अति आवश्यक है।
सुबह का स्नान हमेशा हल्के ठंडे पानी से करना चाहिए।
उससे शरीर में वीर्य और प्राण की वृद्धि होती है, आँखों का तेज बढ़ता है, जठराग्नि स्वस्थ रहती है, और बिस्तर का सारा तमस और आलस्य निचुड़ जाता है। हालाँकि ठंडी ऋतु में हल्के गुनगुने पानी से नहा सकते है।
परंतु ठंड में भी गरम पानी कभी मस्तिष्क पर नहीं डालना चाहिए, गरम पानी सिर पर डालने से आँख, बाल और हृदय की बीमारियां होती है और इंद्रियों में से शक्ति निचुड़ जाती है। और शरीर शिथिल होने लगता है।
गरम पानी से तब नहाना चाहिए जब शरीर को आराम देना हो। ‘Cold water for freshness, Hot water for relaxation
5 कक्षा के स्नान :
1. संपूर्ण स्नान : सिर से पैर तक स्नान सबके लिए
2. स्त्री स्नान : कंधे से नीचे तक स्नान (बाल भिगोए बिना) :
स्त्रियों के लिए
3. अर्थ स्नान : कमर से नीचे तक का स्नान खेत से लौटे किसान के लिए
4. अल्प स्नान : हाथ मुँह और घुटनों से नीचे तक का स्नान प्रतिदिन कहीं से लौटकर घर में जाने से पहले
5. कपिल स्नान : भीगे कपड़े से शरीर को पोछकर करवाया स्नान: बीमार, शारीरिक इजायुक्त और अत्यंत-वृद्ध लोगों के लिए
हर सामान्य पुरुषों के लिए दिन में एक बार संपूर्ण स्नान अति आवश्यक है, फिर दिनभर में 4 से 12 बार अन्य प्रकार के स्नान किया जा सकता है।
स्नान विधि :
1. सर्व प्रथम कमर के नीचे के भाग को गमछे से लपेट लें। संपूर्ण नग्न होकर कभी न स्नान करें, उससे वरुण देव के प्रति अपराध लगता है और वाणी संबंचित तकलीफ़े खड़ी होती है।
2. स्नान की शुरुआतमें ‘जय जगन्नाथ’ बोलकर सिर नीचा करके सिर पर दो-तीन लोटे जल डालकर करना चाहिए। ऐसा करने से मस्तिष्क की गर्मी पैरों से निकल जाती है। जो लोग पहले पैर थोते हैं, उनकी गर्मी मस्तिष्क में चली जाती है। इससे मस्तिष्क में नाना प्रकार की व्याधियाँ उत्पन्न होती हैं।
3. सिर को भिगोने के पश्चात् अन्य अंगों को भिगोएँ। गीले खद्दर आदि मोटे वस्त्र की सहायता से शरीर को खूब रगड़ें। इसीसे चेहरे और शरीर पर ब्रह्मचर्य की चमक आने लगेगी।
4. संपूर्ण स्नान के दौरान इस मंत्र का उच्चारण करें:
ॐ गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन सन्निधिं कुरु ।।
गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु और कावेरी समस्त तीर्थ मेरे पानी में पधारकर उसे पवित्र बनाए, जिसमें स्नान कर मेरे सभी पाप नाश हो।’
5. ज़रूरत पड़ने पर आयुर्वेदिक साबुन का उपयोग करें। यदि उपलब्ध नहीं है तो बेसन, हल्दी, सरसों के तेल का उबटन का उपयोग करें। आजकल के एडवरटाइज़ किए गए बाज़ारू केमिकल वाले साबुन/शैम्पू का उपयोग न करें।
6. स्नान के पश्चात् अंगों से मैल न उतारें। बालों को भी न झटके। बालों से झटका पानी जिसपर पड़े वो फिरसे अशुद्ध हो जाता है। इसलिए तौलिए से शरीर को भलीभांति सुखाकर धुले हुए वस्त्र। धारण करें। स्नान से पूर्व जो वस्त्र त्वचा से लगे पहने थे, उन्हें स्नान के पश्चात् नहीं पहनना चाहिये।
स्नान के कुछ आवश्यक नियम
. तेल मालिश के बाद, शौच क्रिया के बाद, श्मशान से लौटकर, स्त्रीसंग के बाद, बाल कटवा के या दाढी करवाने के बाद तुरंत स्नान कर लें। क्योंकि शास्त्र कहते है कि इन प्रसंगों के बाद जब तक मनुष्य स्नान नहीं करता, तब तक चांडाल बना रहता है।
• वस्त्रविहीन (नग्न) होकर कभी स्नान न करें। अकेले हो फिर भी अपने आपको भी कभी संपूर्ण वस्त्रहीन कभी नहीं देखना चाहिए।
स्नान करके तुरंत ही…
30 बैठक लगाइए (इसको टालें नहीं। इससे शरीर पे बचा पानी और शरीर में बचा तमस निकल जाएगा और शरीर हल्का सा गरम हो जाएगा दिन कि शुरुआत के लिए।
फिर बाधरूम से निकलते समय हथेली में थोड़ा पानी लेकर निकले। अपने बिस्तर पे उसे पुनः यह मंत्र बोलकर छिड़ककर बिस्तर को शुद्ध करें।
ॐ गंगेच च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती निर्बधे सिंधु कावेरी जलैस्मिन सन्निधिं कुरु ।।
इसके बाद पूजा के लिए थोती पहन लें, दिनचर्या के कपड़े अभी ना पहने।
एक भगवान को अर्पित किया सुगंधित इत्र रखें, जो नहाने के बाद तुरंत प्रसाद रूप में गले के आसपास और हथेली के पीछे लगा लें। भगवान के सामने और समाज में हमेशा अच्छी सुगंध के साथ जाना चाहिए।
यहाँ शरीर शुद्धि हो जाने तक कि संपूर्ण वैदिक विधि मैने लिखी हे अपनी दिनचर्या में इसके बाद की जो विधि हे वो अगली पोस्ट में दी जाएगी ।
श्री रस्तु शुभम्