जय जगन्नात
प्रिय मित्रो पहले की पोस्ट में हमने दिनचर्या के बारे में जानकारी प्राप्त की उसमें शरीर शुद्धि तक की क्रिया बताई गई हे ।
उसके बाद क्या करना हे उसका विस्तृत विवेचन इस पोस्ट में लिख रहा हु ।
अगर कोई ब्राह्मण पोस्ट को पढ़ रहा हे तो उसे यह नियम पता होंगे परन्तु अगर किसी को नहीं पता तो पोस्ट को पढ़ ले व नित्यकर्म के उपरांत संध्या वंदन करे क्यों की अगर यज्ञोपवीत धारण किए हुए ब्राह्मण 3 दिन से ज्यादा समय होने पर भी संध्या न करे तो वो शूद्र के सामान हो जाता हे , ओर अंत में स्वान योनि में जाता हे।
चाहे वह वैदिक कर्म से जुड़ा हो या न हो , अगर किसी को संध्या का ज्ञान नहीं हे तो वो योग्य गुरु का मार्गदर्शन ले।
संध्या उपासना पर जल्द ही में एक पोस्ट लिख दूंगा उससे ब्राह्मण युवाओं को आसानी होगी ।

साधना चर्या
90 मिनट महत्तम
यदि मात्र अच्छा खाना खाकर और व्यायाम करके स्वस्थ जीवन जी सकते है, तो ये सब पूजा-साधना की क्या ज़रूरत है?
धनानि भूमौ पशवश्च गोष्छे भार्या गृहद्वारे जनः श्मशाने। देहश्चितायां परलोकमार्गे कर्मानुगों गच्छति जीव एकः ॥
सारा धन भूमि पर ही रह जाएगा. पशु सारे बाड़े में, पत्नी घर के दरवाजे तक, सम्बन्धी श्मशान तक और शरीर चिता तक ही साथ देगा। एक मात्र तुम्हारे कर्म ही है जो तुम्हारे साथ परलोक तक आएँगे।
साधना की क्या आवश्यकता है
साधना करने के लिए ही हमे यह मनुष्य जीवन मिला है।
साधना मात्र से ही मनुष्य अपने अंतिम आध्यात्मिक ध्येय की प्राप्ति कर सकता है और इस जन्म मृत्यु के चक्र के निकल सकता है। खाना, पीना, सोना, संभोग और रक्षण तो प्राणी भी करते है।
तदुपरांत,शास्त्र कहते है कि जन्म लेते ही मनुष्य तीन प्रकार के ऋण से बंध जाता है।
1. देव ऋण : भगवान और देवों के प्रति ऋण क्योंकि जन्म से ही हम उनके दिये प्राकृतिक ससाधनो का उपयोग करते है। जैसे की प्राण वायु, जल, भोजन, सूर्यप्रकाश धरती आदि…
2. पितृ ऋण : हमारे पित ओं के पुण्यों और उनके श्रम से हमे मिली संस्कृति सभ्यता और जन्म से मिले ऐश्वर्य आदि का ऋण
3. ऋषि ऋण : ऋषियों क सतत प्रयासों के वजह से हमारे पास यह सनातन शास्त्रों का ज्ञान व मार्गदर्शन है, जिसके उपयोग से हम यह मनुष्य जीवन को सफलना से जी पा रहे है।
इन ऋण को कैसे चुकाएँ?
1. देव ऋण : भगवान के नाम का जप, कीर्तन और भक्ति कर के सदा उनके दिखाए धर्म के मार्ग पर चलने से..
2. पितृ ऋण : अपने माता पिता व वरिष्ठों का आदर सम्मान और सेवा करके, तथा पूर्वजों के लिए श्राद्ध, यज्ञ और कुल वृद्धि के कार्य करके…
3. ऋषि ऋण : धर्म का पालन करके, साधु, गुरु और संतों को नियमित दान दक्षिण देकर, व धर्म का प्रचार प्रसार कर के…
सुगम दिनचर्या दीर्घायु जीवन के लिए
शिखा बंधन…
ध्यान दाने जपे होगे संध्यायां देवतार्थने। शिक्षा प्रचि किनः कर्म में कुर्यात् वे कदाचन ॥ सोपवीतिना भव्य सदा बस्दशिखेनच । विमिस व्युपवीतिश्च यत् करोति न उत् कृतम् ॥ कात्यायन
स्नान, दान, जप, होम, संध्या, देवपूजा आदि धर्म-कर्म यदि शिखा के बिना करते है तो वे न करने समान हो जाते है। तथा शिखा मे गाँठ लगाए बिना किया गया पुण्यकर्म भी न करने समान हो जाता है। इसलिए शिखा का होना और उसका बंधन आवश्यक है। जटा होने पर भी शिखामें गाँठ मारनी चाहिए।
इसलिए,
स्नान के तुरंत पश्चात इस मंत्र बोलकर शिखा को बांध लेना चाहिए।
| चिदूपिणि महाभाये दिव्यतेजः समन्विते तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे ॥
या फिर
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।
यदि आपकी शिखा नहीं है तो, आज से ही बढ़ाना शुरु कीजिए। मस्तिष्क के ऊपर के मध्य में जहां ब्रह्म रंध्र होता है (जहां से आत्मा उच्चगती को प्राप्त करती है) वहाँ कम से कम ढाई अंगुल (2.5 इंच) बाल को कभी ना कटवाएँ।
जब भी नाई के पास जाओ तो बताओ कि शिखा के लिए उतने बाल छोड़ दें। शिखा में मनुष्य की आध्यात्मिक व साधना की शक्तियों का संचय होता है, इसलिए इतिहास में सनातनियों ने शिखा कटवाने के बदले मृत्यु को स्वीकार करना पसंद किया है। स्वयं सोच लीजिए शिखा कितनी आवश्यक है।

2. तिलक
तत्सर्व निष्पालं याति ललाटे तिलकं विना ॥ ब्रह्मवैवर्त पुराणपण तिलक बिना किए गए सर्व पुण्य कर्म निष्फल होते हैं।
युशदानतपश्चर्याजपहोमादिकं च यत्। ऊर्ध्वपुण्ड्रधरः कुर्यात्तस्य पुण्यमनन्तकम्।।
ऊर्ध्वपुण्ड्र धारण कर जो कुछ यज्ञ, दान, तपश्चर्या, जप, हवन आदि किया जाता है, उसका अनन्त पुण्य होता है ।।
गोपीचन्दनलिप्ताङ्गो ये यं पश्यति चक्षुषा।
तं तं पूतं विजानीयात नात्र कार्या विचारणा।।
गोपी चन्दनसे युक्त व्यक्ति अपने नेत्रोंसे जिस जिसको देखता है। उन सभीको पवित्र जानना चाहिए, इसमें कोई सन्देह नहीं है।
और गलती से भी कभी तिलकधारी की निंदा न कीजिएगा, क्योंकि शिवजी ने तिलक धारी की निंदा करने वालो को देखने से ही पाप लगे उतने तुच्छ, नरकगामी और अंत में श्वान, गधा, सुवर व कीड़े मकोड़ों की योनि में जन्म लेने का विधान दिया है।
ज्योतिष शास्त्र अनुसार प्रतिदिन चंदन का तिलक लगाने मात्र से भी बहुत सारी ग्रह दशाएँ सुधरने लगती है। और शास्त्र कहते है कि यमराज ने अपने यमदूतों को भी आदेश दिया है कि जिनके शरीर पर बारह तिलक, मस्तक पर शिखा और गले में तुलसी माला हो उन्हें दूर से ही प्रणाम कर लो, उन्हें नरक की यातनाएँ कभी मत दो।
इसलिए हमेशा तिलक करके ही दिन की शुरुआत करें। तिलक के लिए भगवान को अर्पित चंदन, भस्म, कुमकुम या तुलसीकी मिट्टी उपयोग में लें।
यदि आप किसी परंपरा से हो तो उस परंपरा विशेष का तिलक कीजिए। यदि आप किसी विशेष देवता या भगवान की पूजा कर रहे हो तो उनकी पूजन विधि के अनुसार तिलक कीजिए।
शरीर को भगवान का मंदिर समजकर इन बारह स्थान पर गोपीचंदन के तिलक से उसका शृंगार करना चाहिए।

1. ओम केशवाय नमः बोलकर माथे पर
2. ओम नारायणाय नमः बोलकर नाभि पर
3. ओम माधवाय नमः बोलकर छाती पर
4. ओम गोविन्दाय नमः बोलकर गले पर
5. ओम विष्णवे नमः बोलकर दाहिने पेट पर
6. ओम मधुसूदनाय नमः बोलकर दाहिनी भुजा पर
7. ओम त्रिविक्रमाय नमः बोलकर दाहिने कंधे पर
8. ओम वामनाय नमः बोलकर बायें पेट पर
9. ओम श्रीधराय नमः बोलकर बायीं भुजा पर
10. ओम ऋषिकेशाय नमः बोलकर बायें कंधे पर
11. ओम पद्मनाभाय नमः बोलकर ऊपरी पीठ पर
12. ओम दामोदराय नमः बोलकर निचली पीठ पर
अंत में ओम वासुदेवाय नमः बोलकर बचा हुआ चंदन शिखा पर लगा दें।
यदि आप भस्म धारण करते है तो भस्म अभिमंत्रित कर लेने के बाद क्रमशः ओम नमः शिवाय बोलकर निम्न अंगो पर भस्म त्रिपुण्ड धारण करें।

सुगम दिनचर्या दीर्घायु जीवन के लिए
1. ललाटे एक
2. गले पर एक
3. दो बाहु पर
4. दो कोहनी पर
5. दो हाथ पर
6. दो हाथ के ऊपर
7. दो छाती पर
8. दो पेट पर
इन मंत्रों का भी उच्चारण कर सकते है,
ॐ त्र्यायुषं जमदग्नेरिति ललाटे।
ॐ कश्यप त्र्यायुषमिति ग्रीवायाम्।
ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषमिति भुजायाम्।
ॐ तन्नो अस्तु त्र्यायुषमिति हृदये।
बची हुई भस्म हथेलियों में मसल लें।
यदि आप देवी माँ का तिलक करते हो तो कपाल के मध्य में बिंदी से थोड़ा लंबा कुमकुम से तिलक कीजिए।
वैसे तो प्रयास कीजिए कि आप हर जगह अपने तिलक को ऐसे ही करके जाओ। परंतु यदि किसी जगह आप ऐसे तिलक के साथ नहीं जा सकते. जैसे की स्कूल, कॉलेज, ऑफिस या विदेश यात्रा में, तो ऐसे समय पर आप थोड़ा चंदन या भस्म और अधिक पानी लेकर सारे तिलक कर सकते है, जिससे भगवान के लिए तिलक रहेंगे परंतु जनसामान्य के लिए अदृश्य रहेंगे। अब अपने घर के मंदिर के सामने अपने आसान को ग्रहण कर बैठ जाइए।
क्योंकि अब करेंगे…
सुगम दिनचर्या दीर्घायु जीवन के लिए
3. आचमन शुद्धि1
आयतं पूर्वतः कृत्वा गोकर्णाकृतिवत् करम्। संहताङ्गुलिता तोघं गृहीत्वा पाणिना द्विजः । मुक्ताङ्गुष्ठकनिक्षेव शेषेणानमनं चरेत् ।
हथेली को गाय के कान की तरह मोड़ कर अंगूठे और कनिष्ठिका को अलग कर बाकी तीनो अंगुलियों को मिलकर ब्रह्म तीर्थ से आचमन करना चाहिए।
अपने दाहिने हाथ को यहाँ दिखाई गई गोकर्ण मुद्रा में कर तीन बार उसमे जल लेकर ब्रह्मतीर्थ से तीन बार निम्न श्लोक बोलकर आचमन ग्रहण करें।
ओम केशवाय नमः।
ओम नारायणाय नमः।
ओम माधवाय नमः।
फिर ब्रह्मतीर्थ (अंगुष्ठ का मूल भाग) से दो बार होंठ पोंछते हुए ओम गोविन्दाय नमों नमः ।। बोलकर दोनों हाथों में फिरसे आचमन जितना पानी लेकर हस्त प्रक्षालन करें (हाथ धो लें)।
आचमन करने के लिए यदि आपके पास यहाँ दिखाया है ऐसा आचमनीय नहीं है। तो बसा लें (ज्यादा महँगा नहीं आता और जीवन भर चलता है) जिस दिन आचमन न कर पाएँ उस दिन अपने दाहिने कान को छू लेने से आचमन समान शुद्धि मानी जाती है।
4. सूर्य अर्घ्य
सूर्य नारायण सारे ग्रहों के राजा है तथा भगवान नारायण के नेत्र है,
• इसलिए उनको नियमित अर्घ्य देने से मनुष्य भी सूर्य के जैसा ही समाज में चमकता रहता है, और उसे राजशाही सुख मिलते है,
• सारे ग्रहों का प्रकोप टलता है,
सरकारी कामो में शीघ्र ही सफलता मिलती है,
• पितृदोष का निवारण होता है,
• आँखों की समस्या दूर होती है,
• आत्मविश्वास बढ़ता है,
• हृदय रोग की समस्या दूर होती है,
और धन-संपत्ति प्राप्ति के द्वार खुल जाते है।
सूर्य अर्घ्य देने में आवश्यक नियम :
• सूर्यदेव अनुशासन (Discipline) के देवता है, इसलिए उन्हें एक निश्चित समय पर अर्घ्य अर्पित करना चाहिए। यदि सुबह 5 बजे देते हो तो हररोज़ 5 बजे ही दो, यदि 6 बजे तो 6 बजे ही। किसी दिन देर होने पर एक और लोटा भर जल प्रायश्चित रूप अर्पण कीजिए।
• 7:30 से देर का नियम न बनाएँ।
• जल किसी ऐसी जगह अर्पण कीजिए जहां किसिका पैर अर्घ्य के पानी पर न पड़े। या फिर किसी पात्र में ही दे दीजिए, और उस पानी को किसी पेड़ पौधे को दे दीजिए।
• यदि बादलों वाला मौसम है और सूर्य देव दर्शन नहीं दे रहे है फिर भी पूर्व दिशा में देखकर अर्घ्य अर्पण करें।
• किसी दिन कुछ ख़ास कारणों से दि नहीं अर्पण कर पाए तो सूर्यदेव के दर्शन करते हुए हाथ जोड़कर मन में ही विधिवत जल अर्पण कर दें और क्षमा माँग लें।
सुगम दिनचर्या दीर्घायु जीवन के लिए
सूर्य अर्घ्य विधि :
1. ताँबे के कलश (लोटे) में साफ़ पानी भरें।
2. उसमे दूध, दर्भ (कुथा), घी, मधु (शहद), रक्त-चंदन, लाल पुष्प, गुह. शक्कर, चावल इनमें में से जो भी उपलब्ध हो वो थौड़ा मिला सकते है। कुछ न हो तो जल मात्र से अर्ध्य अर्पण करें।
3. फिर पूर्व दिशा में मुख कर सर थोड़ा झुककर मंत्र बोलते अध्र्घ्य दें।
4. अर्घ्य देने के पश्चात् अर्घ्य दिये हुए जल को हाथ लगाकर जानी दोनों आँखों और कानों को स्पर्श कर मस्तक पर हाथ फेर लें।
5. थोड़ा जल आप ग्रहण भी कर सकते है।
6. फिर अपनी जगह पर सात प्रदक्षिणा कीजिए।
सुगम दिनचर्या दीर्घायु जीवन के लिए
अर्घ्य मंत्र :
एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजो राशे जगत्पते। अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्ध्य नमोस्तुते ।।
या फिर आप सूर्यदेव के 12 नाम का उच्चारण कर सकते हो..
1- ॐ सूर्याय नमः।
2-ॐ मित्राय नमः।
3- ॐ रवये नमः।
4. ॐ भानवे नमः।
5- ॐ खगाय नमः।
6-ॐ पूष्णे नमः।
7- ॐ हिरण्यगर्भाय नमः।
8- ॐ मारीचाय नमः।
9- ॐ आदित्याय नमः।
10- ॐ सावित्रे नमः।
11-ॐ अर्काय नमः।
12- ॐ भास्कराय नमः।
और यदि आप द्विज हो और आपके पास उपनयन है तो आप तीन बार गायत्री मंत्र भी उच्चारित कर सकते हैं।
और यदि कुछ ना आए तो ॐ सूर्याय नमः को ही 12 बार उच्चारित कीजिए।
9. व्यायाम…..20 मिनट

पूरे जगत की सारी संपत्ति, समस्त शास्त्रों का ज्ञान और ब्रह्मांड के सारे ऐकुर्य भी मिल जाए परंतु यदि आपका शरीर निर्बल होगा तो न योग कर पाओगे न ही भोग। इसीलिए आप बच्चे हो, बूढ़े हो या जवान, जीवन में नियमित व्यायाम को प्राथमिकता दें।
प्रतिदिन कितना व्यायाम करें?
नियमित व्यायाम से बल, बुद्धि, स्वास्थ्य, आयु और यौवन में वृद्धि होती है। इसीलिए प्रतिदिन कम से कम इतना व्यायाम कीजिए की जिससे कपाल (Forehead), बगल (Armpit) और रीढ़ (spine) में पसीना हो।
व्यायाम से आपके शरीर से सारा तमस निकल जाएगा, आलस्य नहीं आएगा, आपकी त्वचा साफ़ और दारा रहित हो उसमे चमक आएगी, रात को अच्छी नींद आएगी, पाचन शक्ति बढ़ेगी, मानसिक Depression हटेगा, मोटापा और पतलापन हटेगा और आत्मविश्वास बढ़ेगा।
कौनसा व्यायाम करें?
• घर पर योगासन करना हर उम्र में लाभदायी है।
• युवाओं को यदि देसी अखाड़ा है तो वहाँ व्यायाम करना उत्तम रहता है।
• यदि अखाड़ा नहीं है तो घर पर कुछ गदाएँ और मुद्गल खरीदिए या बनवाये और घर पर ही व्यायाम कीजिए।
• यदि अकेले नहीं कर सकते तो Gym जाकर कीजिए।
• यदि वो भी नहीं तो घर पर दंड, बैठक और सपाटे लगाएँ, उत्तम होता है।
कुछ नहीं तो अपनी शरीर की प्रकृति के अनुसार सुबह सूर्य या चन्द्र नमस्कार कीजिए।
वात्त प्रकृति (पतले शरीर वाले): 12 बार सूर्य नमस्कार (थीरे धीरे) पित्त प्रकृक्ति (मध्यम शरीर वाले): 16 बार चन्द्र नमस्कार (धीरे धीरे) कफ़ प्रकृति (मोटे शरीर वाले): 12 बार सूर्य नमस्कार (शीघ्रता से)।
इसी के साथ यह प्रकरण “दिनचर्या ” यही पर समाप्त होता हे ।
इसमें ओर भी कई कृत्य हे परंतु समय के अभाव में मानव वो सब पालन नहीं कर सकते अतः में वो सब यहां नही लिख रहा हु।
सभी कार्य संपन्न करने के बाद यथा संभव अपने इष्ट देव का नाम जप करे नहीं तो “नारायण नारायण” का जप करे।
ओर अपने कर्म का पालन करे ।