महामृत्युंज द्वात्रिंशाक्षरी वेदोक्त मन्त्र के शब्द की शक्ति

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वेदोक्त मन्त्र के शब्द की शक्ति



महामृत्युंज मंत्र की शक्ति व हर एक अक्षर का अर्थ जिसको जानना आवश्यक हे ।
मंत्र को जितनी गूढता से जाना जाता हे उसका प्रभाव उतना ही शीघ्र मिलता हे ।

यहाँ पर मैं इसी द्वात्रिंशाक्षरी वेदोक्त मन्त्र के शब्द की शक्ति का स्पष्टीकरण करता हूँ।

‘त्र’ त्र्यम्बक, त्रि शक्ति तथा त्रिनेत्र का प्रतीक है। यह शब्द तीनों देव अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु और महेश की भी शक्ति का प्रतीक है।

‘य’ यम तथा यज्ञ का प्रतीक है।

‘म’ मंगल का द्योतक है।

(यहाँ पर ‘य’ तथा ‘म’ को संलग्न करके ‘यम’ कहे जाने पर मृत्यु के देवता का प्रतीक हो जाता है।)

‘ब’ बालार्क तेज का बोधक है।

‘कं’ काली का कल्याणमयी बीज है। काली का एकाक्षरी बीज ‘क्रीं’ है और उन्हें ‘ककार’ सर्वांगी माना जाता है।

‘य’ उपरोक्त वर्णन के अनुसार यम तथा यज्ञ का द्योतक है।

‘जा’ जालंधरेश का बोधक है।

‘म’ महाशक्ति का बोधक है।

‘हे’ हाकिनी का बोधक है।

‘सु’ सुप्रभात, सुगन्धि तथा सुर का बोधक है।

‘गं’ गणपति बीज होने के साथ-साथ ऋद्धि-सिद्धि का दाता भी है।

‘ध’ धूमावती का बीज है जो कि अलक्ष्मी अर्थात् कंगाली को हटाता है। देह को पुष्ट करता है।

‘म’ महेश का बोधक है।

‘पु’ पुण्डरीकाक्ष का बोधक है।

‘ष्टि’ देह में स्थित षट्‌कोणों का बोधक है जो कि देह में प्राणों का संचार करते हैं।

‘व’ वाकिनी का द्योतक है।

‘र्ध’ धर्म का द्योतक है।

‘नं’ नंदी का बोधक है।

‘उ’ उमा रूप में पार्वती का बोधक है।

‘र्वा’ शिव के बाँये शक्ति का बोधक है।

‘रु’ रूप तथा आँसू का बोधक है।

‘क’ कल्याणी का द्योतक है।

‘व’ वरुण का बोधक है।

‘बं’ बंदी देवी का द्योतक है।

‘ध’ धंदा देवी का द्योतक है। इसके कारण देह के विकास समाप्त होते हैं तथा मांस सड़ता नहीं है।

‘मृ’ मृत्युञ्जय का द्योतक है।

मृत्युंजय रुद्र

‘त्यो’ नित्येश का द्योतक है।


‘हे’ प्रभास का।

‘सु’ वीरभद्र का।

‘ग’ शम्भु का।

‘न्धिम’ गिरीश का।

‘पु’ अजैक का।

‘ष्टि’ अहिर्बुध्न्य का।

‘व’ पिनाक का।

‘र्ध’ भवानी पति का।

‘नम’ कापाली का।

‘उ’ दिकपति का।

‘र्वा’ स्थानु का।

‘रु’ मर्ग का।

‘क’ धाता का।

‘मि’ अर्यमा का।

‘व’ मित्रऽदित्य का।

‘ब’ वरुणऽदित्य का।

‘न्ध’ अंशु का।

‘नात’ भगऽदित्य का।

‘मृ’ विवस्वान का।

‘त्यो’ इन्द्रऽदित्य का।

‘मु’ पूषऽदिव्य का।

‘क्षी’ पर्जन्यऽदिव्य का।

‘य’ त्वष्टा का।

‘मा’ विष्णुऽदिव्य का।

‘मृ’ प्रजापति का।

‘तात’ वषट् का बोधक है।

इस मन्त्र के स्पष्टीकरण में अनेक गूढ़ताएँ हैं क्योंकि यही
वो वेदोक्त महामृत्युञ्जय मन्त्र है जो कि संजीवनी विद्या है।

शब्द ही मन्त्र है और मन्त्र ही शक्ति है। अतः यह जान लेना मंत्र जानने वालों के लिए अत्यधिक आवश्यक है कि यदि शब्द ही मन्त्र है और मन्त्र ही शक्ति है तो कौन से शब्द की कौन सी शक्ति है ।

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