ब्रह्मचर्य की रक्षा कैसे करे संपूर्ण जानकारी

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हमारे युवकों की दशा



एक यात्री दूर देश में व्यापार करने के लिए जाता है। मार्ग में निर्जन और बीहड़ जंगल आता है। पथिक चलते-चलते थक जाता है। विश्राम करने के लिये वृक्ष की छाया में सो जाता है। कुछ समय पीछे भूख और प्यास से व्याकुल होकर उठता है। अपनी गठरी देखता है तो भोजन और वस्त्र नहीं मिलते। लंगूर और बन्दरों ने भोजन उठाकर खालिया।

वस्त्र खाली पड़ा है। जलपात्र की ओर जाता है तो उसे भी खाली पाता है। जल भी बन्दरों ने पी लिया। कुछ भूमि पर गिरा दिया। अब कमर से बंधी रुपयों की थैली को देखता है तो वह भी नहीं मिलती। उसी खोज में इधर-उधर दौड़ भाग करता है, कोलाहल करता है और रुदन मचाता है। जिन चोर डाकुओं ने उसके रुपये लिये थे ।

वे उसके शोर से पकड़े जाने के भय से आते हैं और उसका मुंह बन्द करने के लिए खूब डण्डे लगाते हैं और वह भूखा-प्यासा लुटा और मुंह पिटा सा रह जाता है। रात्रि हो जाती है।

चारों ओर जंगली पशुओं के घुघुराने के भयंकर शब्द सुनाई देते हैं। उसे अपनी रक्षा और जीवन का कोई उपाय और मार्ग नहीं दिखाई देता। चारों ओर भय और आतंक का साम्राज्य है, जाये तो कहां जाये ?

ठीक उस यात्री जैसी अवस्था आज हमारे देश के युवकों की है। कुसंग में फंसकर नष्ट और भ्रष्ट हो रहे हैं। वीर्य का कुछ भी मूल्य नहीं समझते। आंख खुलती हैं, तब रोते और पछताते हैं।

एक मनुष्य के हाथ में एक शीशी है जिसमें ५०० रुपये का बहुमूल्य इतर है। उससे पूछते हैं कि आप इसका क्या करोगे ? वह उत्तर देता है-गन्दी नाली में डालूंगा।

इसी प्रकार एक और मनुष्य, जिसके पास एक बहुमूल्य रत्न हीरा है उससे भी पूछते हैं कि इसका क्या करोगे ? वह उत्तर देता है कि इसको बारीक पीसकर मिट्टी में मिलाऊंगा।

इन दोनों से भी बढ़कर मूर्ख और पागल हमारे देश के वे नवयुवक और बालक हैं जो वीर्य जैसे अमूल्य-रत्न (इतर) को जिसकी एक बूंद लाखों रुपयों से भी बढ़कर मूल्यवाली है।

रात-दिन अपने हाथों से हस्त-मैथुन, पशुमैथुन, गुदा-मैथुन आदि पापों के द्वारा गन्दी नालियों में डालते रहते हैं। यदि इसकी रक्षा करके ठीक समय पर खर्च किया जाये तो हनुमान, भीष्म, दयानन्द, गांधी, सुभाष जैसे देवताओं को जन्म लेना पड़े।
निराश न हों

बहुत से नवयुवक, जिनका विवाह भी नहीं हुआ होता, किन्तु अज्ञानवश बाल्यकाल में कुसंगति में फंस अपना जीवन भ्रष्ट कर लेते हैं, उन्हें सत्संग से जब होश आता है बड़े हताश और दुःखी देखे जाते हैं। उन्हें घबराना नहीं चाहिये। जब आंख खुलें, तभी प्रभात समझो।

पिछली बातों को याद करके रोने-धोने में समय न खोओ। व्यर्थ चिन्ता करके अपनी चिता तैयार न करो। बीती को बिसार दो, रही को संभालो।

जब वाल्मीकि-सा डाकू महर्षि बन सकता है, नास्तिक, शराबी तथा चरित्रहीन मुन्शीराम सच्चा साधु स्वामी श्रद्धानन्द संन्यासी अमर शहीद का पद पाता है, प्राचीन गुरुकुल शिक्षाप्रणाली का उद्धार कर हलचल मचाता है,

थोड़ी-सी हड्डियों का पिंजर एम० के० गांधी महात्मा पद को पाता है, तो आप क्या नहीं बन सकते ? सब कुछ बन सकते हैं। इनके जीवन पहले क्या कम गिरे थे ? इतना गिरा हुआ तो कोई ही नवयुकत होता है।

इन्हें संसार का सिरमौर किसने बना दिया ? सदाचार ने। अन्धकार कितना ही पुराना हो, प्रकाश होते ही भाग जाता है। ज़ो कुचेष्टाओं को छोड़ेगा, ब्रह्मचर्य के नियमों और साधनों का दृढ़तापूर्वक पालन करेगा, उसके सब संकट और दुःख दूर हो जायेंगे और सफल होगा।



ब्रह्मचर्य के साधन

१. प्रातर्जागरण

सदैव प्रातःकाल चार बजे उठो। उठते ही ईश्वर का चिन्तन करो। फिर अन्य कार्य करो। प्रातः काल उठने से बुद्धि तीव्र होती है। मनुष्य रोगरहित और स्वस्थ रहता है। जो आलसी मनुष्य उस अमृतवेला में सोता है, स्वप्नदोष आदि रोग उसे ही सताते हैं, क्योंकि गन्दे स्वप्न प्रायः चार बजे के पीछे ही आते हैं। इसलिये चार बजे के पीछे ब्रह्मचर्य-प्रेमियों को नहीं सोना चाहिये ।

२. उषःपान तथा चक्षुस्नान

शुद्ध जल को लेकर मुख को पूरा भरलो-और साथ ही दूसरे जल से आंखों में खूब छींटे दो, फिर कुल्ली क्रके आठ-दस घूंट जल पी लो। इस जलपान से वीर्यसम्बन्धी रोग नष्ट होता है। बवासीर नहीं होती। अजीर्ण (कब्ज) दूर होता है और शौच खुलकर आता है। कामविकार और शरीर की उष्णता दूर होती है।

३. शौच

जल पीकर लघुशंका जा कुछ समय के पीछे खुले जंगल में जाकर
मलत्याग (शौच) करें। शौच के लिए जितना ग्राम से दूर जायें उतना ही अच्छा है। जिधर से वायु आता हो उधर मुख करके बैठें। मुख तथा दांतों को बन्द रखें। बायें पैर पर दबाव रखें। शौच के समय जोर न लगायें और न ही कांरों, बल लगाने से वीर्यनाश हो जाता है। जो मल स्वयं आजाये, ठीक है।

यदि शौच खुलकर नहीं आता और कब्ज रहता है, तो शौच जाने से पूर्व पेट के आसनादि हल्के व्यायाम करें। पेट को खूब हिलावें। पीछे शौच जायें तो मलबद्ध नहीं होगा। सायंकाल तांबे के पात्र में जल रखदें। उसका प्रातः काल पान करने से शौच ठीक होता है।

शौच दोनों समय प्रातः और सायं अवश्य जायें। मल तथा मूत्र के वेग को कभी नहीं रोकें। इनके रोकने से अनेक रोग होजाते हैं। मल मूत्र की उष्णता से वीर्यनाश भी होजाता है।

शौच जाते समय बड़ा जलपात्र अवश्य ही साथ लेजायें। दोनों समय मूत्र-इन्द्रिय तथा गुदा-इन्द्रिय को शुद्ध ठण्डे जल से कई बार मिट्टी लगाकर धोयें। जो सफेद मैल मूत्रेन्द्रिय के अगले भाग पर खाल के नीचे जम जाता है उसे जल से साफ करदें और इन्द्रिय के छिद्र पर, जिससे मूत्र निकलता है ठण्डे पानी की बारीक धार एक-दो मिनट डालें।

विचार शुद्ध रखें। ठण्डे पानी की धार से शरीर में ठण्डक होकर मन की चंचलता दूर होती है और निरन्तर सेवन से स्वप्नदोष भी नहीं होता। जब-जब मूत्र त्यांग करें, तब-तब ठण्डे जल से इन्द्रिय को धो डालें। शौच के पीछे हाथ तथा जलपात्र को कई बार मिट्टी लगा-लगाकर धोयें।

प्रातः जागरण, उषःपान, चक्षुःस्नान, शौचादि के विषय में मेरी पुस्तक “ब्रह्मचर्य के साधन १-२ भाग पढ़ें।

४. दन्त-धावन

कीकर, नीम, मौलसरी किसी एक वृक्ष की दातुन प्रतिदिन किया करें। इससे दांत-रोग दूर होंगे, पाचन शक्ति और आंखों की ज्योति बढ़ेगी।

५. स्नान

प्रतिदिन कुंए के ठण्डे और ताजा जल से रगड़-रगड़कर घर्षण स्नान करें। पहले सिर पर और फिर शरीर के सब अंगों पर पानी डालें, गर्म जल से कभी भूलकर भी नहीं नहाना। नाभि के नीचे खूब ठण्डे जल की धार डालें। इससे स्वप्नदोष दूर होकर वीर्यरक्षा में लाभ होगा। खद्दर के अंगोछे से पोंछकर शरीर को सुखालें, फिर शुद्ध खद्दर के सादे वस्त्र धारण करें। ब्रह्मचारी सदैव दोनों समय स्नान करे तो और भी अच्छा है, नहीं तो गरमी के काल में तो अवश्य ही दोनों समय नहाये।

६. सन्ध्या तथा प्राणायाम

एकान्त शुद्ध स्थान में ईश्वर का भजन तथा सन्ध्या करें। सन्ध्या से पूर्व तथा जब भी प्राणायाम मन्त्र आये, तो कम से कम तीन-तीन प्राणायाम करें। सदा लम्बे तथा गहरे श्वास लेने का स्वभाव डालें। इससे आयु बढ़ती है।

प्राणायाम करने के समय सिद्धासन से बैठें। मूलाधार और नाभि को ऊपर खीचें, इससे स्वप्नदोष आदि विकार दूर होते हैं, वीर्यरक्षा में बड़ी सहायता मिलती है। प्राणायाम ब्रह्मचर्य का सबसे उत्तम साधन है।

अथवा यूं समझिए कि प्राणायाम ब्रह्मचारी का प्राण है। प्राणायाम और सन्ध्या से सब पाप दूर होते हैं तथा मन और इन्द्रियां वश में आती है। प्राणायाम की पूर्णविधि ‘सत्यार्थप्रकाश’ के तीसरे समुल्लास और मेरी “प्राणायाम” पुस्तक में पढ़ें और स्नान, सन्ध्या-यज्ञ आदि के सम्बन्ध में मेरी ‘ब्रह्मचर्य के साघन’ (पांचवां भाग) पुस्तक पढ़ें।

७. व्यायाम

सन्ध्या के पीछे खुली हवा में व्यायाम करें। आसन तथा दौड़ का व्यायाम विद्यार्थियों के लिए विशेष लाभकारी है। पहले सौ गज की दौड़ आरम्भ करें और शनैः शनैः एक मील की, फिर इससे भी अधिक काअभ्यास करें।

ध्यान रहे कि श्वास सदैव नाक से ही लें। शीर्षासन ब्रह्मचर्य का प्राण है और वीर्यरक्षा का उत्कृष्ट साधन है, किन्तु यह ध्यान रहे कि सिर के नीचे कपड़े की मोटी गद्दी रखें और दौड़ आदि सभी व्यायामों से पूर्व इसे करें। पीछे करने से बहुत हानि होती है।

इसे एक मिनट से आरम्भ करके शनैः शनैः दस-पन्द्रह मिनट तक करने का अभ्यास बढ़ावें। जिन्हें स्वप्नदोष होता हो उन्हें सायंकाल भी शीर्षासन और प्राणायाम का दीर्घकाल तक अभ्यास करना चाहिए। इससे वीर्य की ऊर्ध्वगति हो जाती है। वीर्यसम्बन्धी सब रोग नष्ट हो जाते हैं।

इसी प्रकार मयूरासन, सर्वांगासन, हलासन, चक्रासन तथा मयूराचालादि प्रातःकाल करने चाहिएं। सायंकाल शीर्षासन, मोगरी, मुग्दर, दण्ड, बैठक और मल्लयुद्ध (कुस्ती थोड़ी-सी) का व्यायाम अच्छा रहता है। यदि घी, दूध बादाम आदि पुष्टिकारक पदार्थ अधिक मिलें तो अधिक; और कम मिलें तो कम व्यायाम करें। व्यायाम शक्ति और भोजन के अनुसार ही करें। जैसे जल, वायु और अन्न, जीवन का आधार है, ऐसे ही व्यायाम भी स्वास्थ्य का मूल कारण है।

संसार का कोई भी मनुष्य बिना व्यायाम के पूर्ण स्वस्थ नहीं रह सकता। व्यायाम करने में खूब आनन्द लें। व्यायाम करने से शरीर के सब अंग दृढ़ होते हैं। शरीर सुन्दर और सुडौल बनता हे। वीर्य शरीर में पचकर रक्त में मिल जाता है और शक्ति का रूप धारण करता है।

व्यायाम से रंग-रोगन निखरता है। मुख पर तेज और लाली आती है। मनुष्य सदा जवान रहता है। घर के कार्य को कभी व्यायाम न समझें। कार्य-कार्य ही है और व्यायाम-व्यायाम ही। व्यायाम के लिए प्रातःकाल का समय सबसे अच्छा है।

यदि ब्रह्मचारी दोनों समय नियमित व्यायाम करे तो सोने पर सुहागा है। व्यायाम इतना करें कि पसीना आजाये।

पैरोके व्यायाम की अपेक्षा हाथों का व्यायाम अधिक करें, जिससे भुजायें, छाती और मस्तिष्क अधिक बलशाली हों। उष्णकाल में स्नान से पूर्व और शीतकाल में स्नान-सन्ध्या के पीछे व्यायाम कर सकते हैं।

शरीर ठण्डा होने पर अर्थात् आधा घण्टा पीछे स्नान करें। खाना खाकर कभी व्यायाम न करें। ग्रीष्मकाल में व्यायाम के पीछे प्यास लगती है, जल कभी न पियें, बहुत हानि करता है, गोदुग्ध का पान सर्वश्रेष्ठ है। यदि दूध न मिले तो बादाम आदि रगड़कर पीयें। व्यायाम के पीछे भूख लगा करती है, थोडा पुष्टिकारक भोजन अवश्य करलें, भूखा रहना अच्छा नहीं।

पूरे विवरण के लिए मेरे द्वारा लिखित “व्यायाम का महत्त्व और व्यायाम संदेश” पुस्तक पढ़ें।

८. भोजन

भोजन, व्यायाम से दो तीन घण्टे पश्चात् करना चाहिए। भोजन दो ही समय करें। पहिला-बारह बजे से पूर्व और दूसरा-सायंकाल आठ बजे से पूर्व। सायंकाल देर से भोजन करने से भूखा रहना अच्छा है।

यदि ताजा धारोष्ण गोदुग्ध मिल जाए तो भोजन न करें। जिन्हें स्वप्नदोष सताता है वे सायंकाल ७ बजे से पूर्व ताजा दुग्धपान करें। भोजन एक ही समय दोपहर को करें, सोने से तीन घण्टे पहले ही खान-पान से निवृत्त हो जायें।

गर्म दूध तथा भोजन का सेवन कभी न करें। इससे वीर्य पतला होकर हानि हो जाती है।

भोजन सादा, ताजा, सात्त्विक प्रसन्नतापूर्वक भूख लगने पर खूब चबा-चबाकर, भूख रखकर तथा थोड़ी मात्रा में करें।

सबसे श्रेष्ठ भोजन गाय का ताजा दूध, दही, मक्खन, घी, शाक-सब्जी और फल हैं।

बकरी की तरह सारे दिन न चरते रहें। नियत समय पर भोजन करने से मन शान्त और वश में रहता है। बार-बार खाना, अधिक खाना, पेटू बनना है, रोगों और मृत्यु को बुलाना है। य

दि भोजन सूखा हो, शाक में भी जल न हो तो भोजन के बीच में दो चार घूंट जल पी लें। वैसे भोजन के दो-तीन घण्टे पीछे जल इच्छानुसार पिये, जल पीने में कमी न करें। सोते समय कभी भूलकर भी दूध और जल न पियें।

यदि प्यास गर्मी में बहुत तंग करे तो ठण्डे जल से बार-बार कुल्ला करें, पिये नहीं प्यास ‘बुझ जायेगी। कभी भूखे न रहें और न ही अधिक खायें।

निषिद्ध पदार्थ

नमक, मिर्च, खटाई, गुड़, शक्कर, लहसुन, प्याज, बैंगन, तैल की चीजें, अचार, मुरब्बे, चटनी आदि कभी न खायें। यदि ब्रह्मचर्य से प्रेम है तो इनसे दूर रहें।

‘खाना जीने के लिए है न कि जीवन खाने के लिये’ । हम खाते इसलिये हैं कि हमारा शरीर पुष्ट, बलवान् और रोगरहित हो। जो भोजन वीर्यनाशक और हानिकारक हो उसे कभी न खायें, चाहे कितना भी स्वादिष्ट हो। स्वाद के लिये जिह्वा के दास न बनें।

लाल, काली, सफेद, हरी किसी भी प्रकार की मिर्च न खायें। ये सभी ब्रह्मचर्य के लिए विष है,

सोडावाटर, बर्फ, चाय, कहवा, काफी ये सभी वीर्यनाशक हैं, इन्हें कभी न छुयें। मांस, मछली, अण्डे मनुष्य का भोजन नहीं, इन्हें खाकर सात जन्म में भी ब्रह्मचारी नहीं रह सकता। यदि खाते हैं तो अभी छोड़दें।

नशों से बचें

हुक्का, बीड़ी, सिगरेट, शराब, गांजा, अफीम, चण्डू, भंग आदि खाने-पीने की वस्तु नहीं। इनके खाने-पीनेवाला जीवन से प्रेम छोड़वे, कफन मंगवाकर घर में रखे।

कहां वीर्यरक्षा और कहां ये नशे और व्यसन, इनका क्या मेल ? सिगरेट शराब आदि पीनेवाला इन्हें बिना छोड़े ही वीर्यरक्षा करना चाहता है। यदि अपना कल्याण चाहते हैं तो आज ही कान पकड़लें और व्रत लें कि “कभी सिगरेट, शराब आदि विष का पान नहीं करेंगे, चाहे मर भी जायें इन्हें छुयेंगे नहीं।”

इनके पीने खानेवाला सर्वथा नष्ट होकर मिट्टी में मिल जाता है।

६. शयन

सदा अकेले सोयें। कभी किसी अवस्था में भी किसी के साथ यहां तक कि सगे भाई के साथ भी न सोयें। सोने से पूर्व लघुशंका (पेशाब) अवश्य करें। हाथ, पैर, मुख शीतल जल से धोयें। मूत्रेन्द्रिय का स्नान भी हितकर है।

अंगोछे से हाथ पैर पोंछलें। कुर्ता धोती आदि सब वस्त्र उत्तारदें। केवल शुद्ध और बारीक खद्दर का लंगोट (कोपीन) बांधे रहें। मर्द का लंगोट और घोड़े का तंग २४ घण्टे बंधा ही रहना चाहिए। सदा भूमि पर सोयें। एक दरी का बिछौना रखें।

यदि जाड़े में न रह सकें तो एक कम्बल और डाललें, रूई के गद्दे वा कोमल (नरम) बिस्तर पर कभी न सोयें। सीधे, पेट के चल (ऊंघे) कभी न सोयें, ब्रह्मचारी को दायीं करवट सोना चाहिए। सोते समय पैर के ऊपर पैर न रखें, आगे पीछे रखें।

सिर पूर्व वा दक्षिण दिशा की ओर ही रखें। खुले स्थान पर जहां शुद्ध वायु आता हो, सोना चाहिये। खिड़की, जंगले आदि बन्द न करें, मुख ढककर कभी न सोयें, सिर के नीचे ऊंचा वस्त्रादि रखें, ईश्वर का चिन्तन करके गायत्री और ओ३म् का जप करते-करते सायंकाल दश बजे से पूर्व ही सोजायें।

6 घण्टे से अधिक न सोयें। एक नींद सोने का अभ्यास करें। यदि बीच में किसी कारण से आंख खुल जायें तो तुरन्त लघुशंका जायें, आलस्य न करें। यदि रात्रि अधिक शेष हो और सोना ही पड़े तो फिर मुंह धोकर ईश्वर का चिन्तन करते हुए सो जाना चाहिये। न सोयें तो अच्छा है।

सारे दिन काम में लगे रहें, निठल्ले न बैठे। सायंकाल व्यायाम भी इतना करें कि दिन के कार्य और व्यायाम से इतने थक जायें कि रात्रि में एक हीगहरी नींद आये। नींद खुलने पर आलस्य में न पड़े रहें। अपने नित्यकर्म में लग जावें।

सायंकाल यदि ठीक समय सोओगे तो प्रातःकाल ठीक समय पर उठ सकोगे। देर तक जागने से शरीर और मस्तिष्क में उष्णता बढ़कर वीर्यनाश होता है।

दस बजे के पीछे पढ़ने के लिए भी न जागें, यदि रात्रि में पढ़ना ही है तो प्रातः काल उठकर पढ़ें। इस समय थोड़ी देर में अधिक याद होता है और फिर भूलता भी नहीं। सारे दिन कार्य करते-करते शरीर और मस्तिष्क थक जाता है।

इन्द्रियां थकी मांदी होती हैं इसलिये विश्राम चाहती हैं। दस बजे से पीछे जागरण और पढ़ना, मस्तिष्क और शरीर को निर्बल करना तथा अपनी निद्रा की मिट्टी खराब करना है, किन्तु यह ध्यान रहे कि दिन में कभी न सोयें, क्योंकि सोने के लिये प्रभु ने रात्रि ही बनाई है।

सत्संग और स्वाध्याय


जो उत्तम विद्वान्, धर्मात्मा और सदाचारी हैं उन्हीं के समीप बैठें, उन्हीं का विश्वास और सत्संग करें। भवसागर से पार तारनेवाले कोई तीर्थ हैं तो साधु महात्मा ही हैं। एक कवि ने कहा है-

संगत कीजै साधु की हरै और की व्याधि।
ओछी संगत नीच की आठों पहर उपाधि ।।

कुसंग का फल नरक है और सत्संग से मोक्ष तक की प्राप्ति होती है।

१. एक बार महर्षि दयानन्द को अमीचन्द ने एक गाना सुनाया उसका गाना सुनकर ऋषि अत्यन्त प्रसन्न हुए और कहा- “अमीचन्द है

तो तू रत्न, किन्तु कीचड़ में पड़ा है” इतना कहना था कि शराबी और वेश्यागामी अमीचंद सब पापों को छोड़कर सच्चा आर्य बन जाता है और सारा जीवन आर्यसमाज के प्रचार कार्य में लगता है।

२. इसी प्रकार अजमेर में महर्षि जी सिपाही लेखराम को उपदेश देते हैं कि २५ वर्ष तक ब्रह्मचारी रहना। वह २५ की जगह ३६ वर्ष तक ब्रह्मचर्य पालन करता है। ऋषि का कार्य पूरा करने के लिए प्राण तक न्यौछावर कर देता है।

सत्संग की बड़ी महिमा है। इसे पाकर डाकू भी महात्मा बन जाता है और पापी भी तर जाता है। इसलिए कुसंग से बचें। स्वांग, नाच, सिनेमा, थियेटर, रामलीला, रासलीला, ड्रामा, नाटक ये सब नष्ट करनेवाले हैं। इन्हें भूलकर भी न देखें। इनसे बढ़कर और क्या कुसंग हो सकता है ?

पांचों विषयों और हस्तमैथुन से बचने के लिए प्रतिदिन धार्मिक पुस्तकों का स्वाध्याय करें। नाबिल-उपन्यास, सांग आदि की गन्दी पुस्तकें भूलकर भी न पढ़ें इंटरनेट पर गंदी विडियोज नहीं देखे ।

आदर्श ब्रह्मचारी स्वामी दयानन्द जी के लिखे सत्यार्थप्रकाश और संस्कारविधि आदि ग्रन्थों को, जो ब्रह्मचर्य की महिमा से भरे पड़े हैं, श्रद्धापूर्वक बार-बार पढ़ें। वह वीर्यरक्षा का कौन-सा साधन है, जिस पर उन्होंने प्रकाश न डाला हो ? उनके ग्रन्थों का स्वाध्याय करना मानो ब्रह्मचर्यामृत के घूंट भरना है।

वह ब्रहाचारी ही क्या है जिसने उनके ग्रन्थों का स्वाध्याय न किया हो। बिना स्वाध्याय के मनुष्य के विचार शुद्ध और पवित्र नहीं होते। बिना विचारों की शुद्धि के वीर्यरक्षा असम्भव है। इसलिए प्रतिदिन सद्ग्रन्थों का स्वाध्याय करें और इस पोस्ट को बार-बार पढ़ें तथा इसके अनुसार चलकर लाभ उठायें।

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Astro Kushal