रुद्राक्ष के प्रकार देवता व मंत्र

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रुद्राक्ष के प्रकार देवता व मंत्र

‘रुद्राक्ष’ वनस्पति-जगत में उपयोगी पदार्थ है। यह एक फल की गुठली है।
इसकी उत्पत्ति मलाया, इण्डोनेशिया, वर्मा, नेपाल आदि पूर्वी देशों में अधिक होती हैं।
वैसे भारत में भी कहीं-कहीं इसके वृक्ष पाये जाते हैं। ‘रुद्राक्ष’ को शिव जी के ‘नेत्र’ से उत्पन्न माना जाता है।
शायद इसीलिए ही इसका नामकरण ‘रुद्राक्ष’ हुआ है। इसकी माला धारण करने और उस पर मंत्र जप करने का विधान है।

‘रुद्राक्ष’ एक पेड़ का फल है। यह फल गूलर के समान गोल होता है। इसकी टहनियों में फलों की संख्या विपुल होती है और वे पककर स्वयं गिर जाते हैं।।
पके फल के दाने उत्तम होते हैं। रुद्राक्ष खरीदते समय उसकी शुद्धता की जांच भली प्रकार कर लेनी चाहिए।

‘रुद्राक्ष’ की कई जातियां होती हैं। इसके बीज प्रायः गोल होते हैं, परन्तु कभी कभी कुछ लम्बे, चक्राकार, उन्नतमुख, अण्डाकार, अर्द्ध-चन्द्राकार भी पाए जाते हैं।
बड़े दाने सुलभ होते हैं, जबकि छोटे दाने कम पाये जाते हैं।

लघु ‘रुद्राक्ष’ काली मिर्च के दाने के बराबर होता है। लघु आकार वाले दानों की माला उत्तम होती है।
छोटे दाने का मूल्य अधिक है लेकिन प्रभाव सभी का समान होता है।

‘रुद्राक्ष’ चाहे जिस आकार में हो, उसके दो सिर होते हैं। ये धारियाँ एक सिरे से चलकर, दूसरे सिरे तक आती हैं। इन्हें ‘मुख’ कहते हैं। जिस दाने पर जितनी धारियां हों, वह दाना उतने ही ‘मुखी’ कहलाता है। इनकी संख्या एक से लेकर इक्कीस तक मानी जाती है। परन्तु अधिकतम 14 धारियों वाले रुद्राक्ष ही देखे गए हैं।

शास्त्र में रुद्राक्ष के दानों का प्रभाव उनके मुखों की संख्या के आधार पर अलग अलग बतलाया गया है

तांबे के दो टुकड़ों के बीच देखने पर असली रुद्राक्ष का दाना घूमने लगता है। रुद्राक्ष का प्रयोग भारत में प्राचीनकाल से होता जा रहा है।

रुद्राक्ष की माला किसी रवि पुष्य योग में अथबा सोमपुष्य योग में गंगाजल में धोकर थाली में रखें।
रुद्राक्ष को गंगाजल दूध, शुद्ध जल, चन्दन मिश्रित जल से स्नान करायें। चन्दन लगायें। धतूरा- मदार चढ़ायें। अक्षत, बेलपत्र भी अर्पित करें, धूप दें और आरती करें।

रुद्राक्ष की माला को उतारना नहीं चाहिए। मंत्र जप के लिए भी माला शोधित की जाती है। उसे धारण न करके, लाल कपड़े की थैली में रखना चाहिए।

रुद्राक्ष

एक मुखी रुद्राक्ष –
देवता–शिव
संबन्धित मंत्र–ओं ह्रीं नमः

दो मुखी रुद्राक्ष
दावत–अर्द्धनारीश्वर
मंत्र–ओं नमः

तीन मुखी रुद्राक्ष
देवता –अग्नि

मंत्र–ओं क्लीं नमः

चार मुखी रुद्राक्ष
देवता–ब्रह्मा
मंत्र–ओं ह्रीं नमः

पांच मुखी रुद्राक्ष
देवता–कालाग्नि रुद्र
मंत्र–ओं ह्रीं नमः

छः मुखी रुद्राक्ष
देवता –कार्तिकेय
मंत्र–ओं ह्रीं हूं नमः

सात मुखी रुद्राक्ष
देवता –सप्त मातृकायें
मंत्र–ओं हूं नमः

आठ मुखी रुद्राक्ष
देवता–बटुक भैरब
मंत्र–ओं हूं नमः

नौ मुखी रुद्राक्ष
देवता–दुर्गा जी
मंत्र–ओं ह्रीं हूं नमः

दस मुखी रुद्राक्ष
देवता–विष्णु
मंत्र–ओं हीं नमः

ग्यारह मुखी रुद्राक्ष
देवता–रुद्र, इन्द्र
मंत्र–ओं ह्रीं हूं नमः

बारह मुखी रुद्राक्ष
देवता–बारह आदित्य
मंत्र–ओं क्रीं धौं रौं नमः

तेरह मुखी रुद्राक्ष
देवता–कार्तिकेय, इन्द्र
मंत्र–ओं ह्रीं नमः

चौदह मुखी रुद्राक्ष
देवता–शिवजी, हनुमान जी
मंत्र –ओं नमः।

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